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क्या है पाक सेना की ‘ब्लीड इंडिया विद थाउजेंड कट्स’ डॉक्ट्रिन, जिसका एक जख्म पहलगाम हमला

नई दिल्ली. पाकिस्तान के साथ भारत का तनाव उसके जन्म के साथ ही है। इस्लाम के नाम पर अलग हुआ मुल्क हमेशा खुद को भारत से अलग दिखाने की जद्दोजहद में ही रहा है, जबकि दोनों देशों का एक साझा इतिहास और संस्कृति है। पाकिस्तान का खुद को अ-भारतीय दिखाने का नैरेटिव भी उसके यहां कट्टरता का एक कारण है। भारत से अलग दिखाने के लिए वह कट्टर इस्लाम पर जोर देता रहा है और अपनी जड़ें तुर्की, सऊदी अरब जैसे मुल्कों से जोड़ता है, जिनकी संस्कृति, भाषा सब कुछ अलग है। फिर भारत की बात करें तो पाकिस्तानी शासक जब भी मुसीबत में आते हैं तो भारत से तनाव बढ़ाने की फिराक में रहते हैं। हाल ही में पहलगाम अटैक और फिर उसके बाद जंग जैसे हालात उसकी ही एक कड़ी हैं।

इस सबकी शुरुआत 1971 की जंग के बाद हुई थी। 1947-48, 1965 और फिर 1971 में हारने के बाद पाक सेना ने मान लिया था कि सीधे युद्ध में भारत से जीतना मुश्किल है। ऐसी स्थिति में उसने छद्म युद्ध शुरू किया, जिसे सरल भाषा में पीठ पीछे वार भी कहा जाता है। इसके तहत उसने आतंकवाद को एक नीति के रूप में स्वीकार किया। कश्मीर से लेकर मुंबई तक के हमलों में यही नीति वजह बनी थी। इस नीति का बाकायदा एक नाम है- ब्लीड इंडिया विद थाउजेंड कट्स। पाकिस्तान की सेना इस नीति पर ही काम करती है। जुल्फिकार अली भुट्टो का तख्तापलट करके आए जनरल जिया उल हक ने ब्लीड इंडिया विद थाउजेंड कट्स की बात की थी। इसका अर्थ था- भारत को एक हजार जगह पर जख्म देना।
यह नीति जुल्फिकार अली भुट्टो का 1977 में तख्तापलट करने के बाद जिया उल हक लेकर आए। मेजर जनरल ध्रुव कटोच अपने एक रिसर्च पेपर ‘Combatting Cross-Border Terrorism: Need for a Doctrinal Approach’ में जिया उल हक की इस नीति को लेकर लिखते हैं, ‘पाकिस्तान को यह आभास हो गया था कि सैन्य ताकत के बल पर भारत से कश्मीर नहीं लिया जा सकता। 1971 में पाकिस्तान के टूट जाने के बाद उसे यह भी लगा कि देश को जोड़ने के लिए भी इस्लाम को एक नीति के तौर पर लाना होगा। यहीं से पाकिस्तान में इस्लामिक वारफेयर की नीति आरंभ हुई। इसके तहत ही जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद के जरिए हजार जख्म देने की नीति को प्रोत्साहन मिला। सीमा पार आतंकवाद 1980 के दशक में प्रारंभ हुआ था। पाकिस्तान ने सशस्त्र आतंकियों को सीमा पार भेजना शुरू किया। सवाल उठे तो यह भी कहता रहा कि यह कश्मीरी लोगों का स्वतंत्रता संग्राम है, इसमें हमारा कोई हाथ नहीं है, सिर्फ नैतिक समर्थन देने के। किंतु सत्य तब सामने आ गया, जब आईएसआई के एक डीजी ने पाकिस्तान की नेशनल असेंबली में बताया कि हम कश्मीर में इस तरह की गतिविधियों को बढ़ावा दे रहे हैं।’

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