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शक्ति लहरी सतधरा धाम : जहाँ मकर संक्रांति पर भरता है विशाल मेला…


छत्तीसगढ की शक्तिपीठों में अब शक्ति लहरी सतधरा धाम का नाम भी प्रमुखता से जुड़ने लगा है। लगभग एक शताब्दी पूर्व से स्थापित माता के इस मंदिर में भक्तजनों का आना निरंतर बढ़ता जा रहा है।
सात नदियों की धाराओं के इस स्थान पर एक साथ मिलने से सतधरा या सप्तधारा के नाम से जाने जाना वाला यह स्थल गरियाबंद जिला महासमुंद जिला और रायपुर जिला की सीमारेखा पर ग्राम हथखोज के अंतर्गत स्थित है।
ऐसी मान्यता है कि यहां महानदी, सोढुल नदी और पैरी नदी की तीन धाराओं के साथ सूखा नदी, सरगी नदी, केशवा नदी और बगनई नदी आपस में एक साथ मिलती हैं, इसीलिए इस विराट भू-भाग में फैले संगम को सप्तधारा या सतधरा कहते हैं। यहां यह उल्लेखनीय है कि संभवतः समूचे छत्तीसगढ में नदियों का संगम स्थल इतना विस्तारित कहीं पर नहीं है, जितना विस्तारित यहां का संगम पाट है।
माता जी के यहां पर स्थापित होने के संबंध में बताया जाता है, कि माता की यह बिना शीश वाली प्रतिमा नदी में बहकर आयी है, एक भैंस चराने वाले यादव को यह प्राप्त हुई है। बताया जाता है कि वह व्यक्ति अपनी भैंसों को लेकर संगम स्थल पर जाया करता था, वहां उसकी भैंस एक स्थान विशेष पर हमेशा चमक जाती थी। यादव को आश्चर्य होता था कि आखिर भैंस यहां पर चमक या झिझक क्यों जाती है। उसने उस स्थल को ठीक से देखकर रेत में टटोलने लगा कि आखिर यहां है क्या? तब यह प्रतिमा उसके हाथों में आयी।
बताया जाता है, कि तब माता ने उस यादव को स्वप्न दिया कि मुझे यहां से निकालकर अन्य स्थल पर स्थापित करवा दो। उन्होंने बताया कि मुझे उठाकर ले जाते समय हर कदम पर एक-एक नारियल रखते जाना और जहां पर नारियल अपने आप फूट जाए उस स्थल पर मुझे स्थापित कर देना। वर्तमान में स्थापित जगह पर ही नारियल के फूटे जाने का जिक्र किया जाता है।
वर्तमान में यह स्थल देवी उपासना के प्रमुख पीठ के रूप में विकसित हो रहा है। राजिम से महासमुंद को जोड़ने वाले इस मार्ग पर स्थित सूखा नदी पर भव्य पुल बन जाने के कारण यहां से होकर गुजरने वालों की संख्या में काफी वृद्धि हुई है, इसका प्रतिफल मंदिर के दर्शनार्थियों के लिए भी सार्थक रहा है, उनकी संख्या में भी वृद्धि हुई है।
यहां पर प्रतिवर्ष मकर संक्रांति के अवसर पर तीन दिनों का विशाल मेला भरता है। मेला का स्वरूप दिनों दिन बढ़ता ही जा रहा है। इसी अवसर पर यहां सूखा लहरा लिया जाता है।
बताया जाता है, कि संगम स्थल की रेत पर लोग लोट कर लहरा लेते हैं। जिसके भाग्य में होता है, वह उंगली के स्पर्श मात्र से काफी दूर तक लुढ़कते हुए चला जाता है, और निढाल होने के पश्चात ही रूकता पाता है।
माता के इस स्थल पर नवरात्र के दोनों ही अवसर पर ज्योति कलशों की स्थापना की जाती है, जहां श्रद्धालु अपनी मनोकामना को लेकर ज्योति प्रज्वलित करते हैं।
-सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर

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