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क्या खोखले थे दावे? नामांतरण प्रक्रिया पर सरकार के आदेश ज़मीन पर नाकाम..!

बड़े बड़े बैनर में प्रदर्शित  दावे.!

# चक्कर नहीं काटने पड़ेंगे,

#आम नागरिक को मिलेगी राहत,

#भ्रष्टाचार पर कसेगी लगाम..

रायगढ़/रायपुर।
छत्तीसगढ़ सरकार ने 24 अप्रैल 2025 से लागू एक आदेश जारी कर ज़मीन की रजिस्ट्री के साथ ही त्वरित नामांतरण की घोषणा की थी । बड़े-बड़े बैनरों और सरकारी विज्ञापनों में यह दावा किया गया कि अब आम नागरिकों को तहसील के चक्कर नहीं काटने पड़ेंगे और रजिस्ट्रार/सब-रजिस्ट्रार के स्तर पर ही नामांतरण की प्रक्रिया पूरी हो जाएगी। लेकिन ज़मीनी हकीकत कुछ और ही कहानी बयां कर रही है।

कागज़ी आदेश बनकर रह गया सुधार:-

हालात यह हैं कि रजिस्ट्री कराने के बाद आम नागरिक को सिर्फ B1 और ख़सरा की प्रतियां मिल रही हैं, जबकि नामांतरण की अंतिम प्रक्रिया और ऋण पुस्तिका बनवाने के लिए अब भी तहसील कार्यालय के चक्कर काटने पड़ रहे हैं। आदेश के अनुसार, नामांतरण की प्रक्रिया रजिस्ट्रार कार्यालय से पूरी होनी चाहिए, परंतु व्यवहार में यह अभी लागू नहीं हो पाया है।

दावों और सच्चाई के बीच फासला

सरकार ने कहा था कि:

#रजिस्ट्री के समय ही नामांतरण की प्रक्रिया पूरी होगी।

#इससे भ्रष्टाचार पर लगाम लगेगी।

#दलालों से छुटकारा मिलेगा।

#आम नागरिक को राहत मिलेगी।

स्वचालित नामांतरण:
रजिस्ट्री होते ही, नामांतरण की प्रक्रिया अपने आप शुरू हो जाएगी.
तहसीलदारों से अधिकार छीने गए:
नामांतरण का अधिकार अब रजिस्ट्रार और सब-रजिस्ट्रार को दिया गया है.
पारदर्शिता और गति:
यह कदम प्रक्रिया को पारदर्शी, तेज और भ्रष्टाचार मुक्त बनाएगा.
समय और धन की बचत:
लोगों को नामांतरण के लिए अब दफ्तरों के चक्कर नहीं लगाने पड़ेंगे, जिससे समय और धन दोनों की बचत होगी.
भ्रष्टाचार पर रोक:
एक ही संपत्ति की कई रजिस्ट्री और फर्जीवाड़े की संभावना कम होगी.

लेकिन धरातल पर न तो यह प्रक्रिया सरल और मूर्तरूप ले पाई है, न पारदर्शिता आई है। नागरिकों को अब भी तहसील कार्यालय जाकर ऋण पुस्तिका बनवाने आवेदन देना पड़ता है,चक्कर लगाने पड़ते हैं, भेंट चढावा देना पड़ता है।

क्यों होती है ऋण पुस्तिका की आवश्यकता:-

किसानों को शासन की विभिन्न योजनाओं जैसे धान विक्रय,खाद बीज लेने, बैंकों से ऋण लेने, ज़मानत के लिए इत्यादि के लिए ऋण पुस्तिका की आवश्यकता पड़ती ही है केवल बी 1 ख़सरा होने से उपरोक्त कार्य संपादित नहीं होते हैं। यही नहीं पुनः यदि वर्तमान क्रेता भूमि विक्रय करना चाहे तो भी ऋण पुस्तिका के बगैर भूमि विक्रय नहीं की जा सकती है।

विष्णु के सुशासन पर सवाल

यह सारा मामला तब और गंभीर हो जाता है जब राज्य सरकार खुद को “जनहितकारी और पारदर्शी सुशासन देने वाली सरकार” के रूप में प्रचारित कर रही है। सवाल उठता है कि अगर व्यवस्था लागू नहीं हो पाई, तो फिर उसका प्रचार क्यों किया गया?
क्या यह सिर्फ जनता को झुनझुना पकड़ाने जैसा है?

जिला प्रशासन का मौन :-
स्थानीय स्तर पर अधिकारियों की चुप्पी भी चिंता का विषय है। न तो कोई स्पष्ट दिशा-निर्देश आमजन तक पहुँचा है, और न ही रजिस्ट्री कार्यालयों में इस आदेश को लागू कराने की कोई ठोस व्यवस्था की गई है।

होना य़ह चाहिए :-

आदेश के प्रभावी क्रियान्वयन की गारंटी दी जाए।

रजिस्ट्री कार्यालयों को पूरी ज़िम्मेदारी और तकनीकी सुविधा दी जाए ताकि वहीं से पूर्ण नामांतरण पूरा किया जा सके।

यदि आदेश लागू नहीं है, तो जनता को भ्रमित करने वाले प्रचार को रोका जाए।

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