आशंकाओं के घेरे में युक्तियुक्तकरण और सरकारी स्कूलों का भविष्य..सरकार की मंशा पर उठते सवाल.. वित्तीय बोझ कम करने के लिए बिछायी गई बिसात पर व्यापक हित लगे दांव पर.. पढ़िए सुश्री तृप्ति साहू का यह विश्लेषणात्मक लेख..

⭕️शिक्षकों के पदोन्नति के अवसर कम होंगे…
⭕️वित्तीय बोझ कम किया जा सके व शिक्षक भर्ती करना ना पड़े…
⭕️2008 के सेटअप मे परिवर्तन करने से 49109 शिक्षक के पद स्वतः ही समाप्त हो जाएगा एवं 4700 स्कूल बंद करने से 6000 पद और समाप्त कर दिया जा रहा है इस प्रकार 55000 पद को सरकार के द्वारा समाप्त किया जा रहा है*….
रायपुर। छत्तीसगढ़ शासन के आदेश के तहत स्कूल शिक्षा विभाग में वर्तमान में प्रक्रियाधीन युक्तियुक्तकरण के लिए स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा जारी संदर्भित निर्देश शिक्षा की गुणवत्ता, छात्रहित, शिक्षक व पालक हितों के प्रतिकूल है। इस प्रकार की धारणाएँ शिक्षाविदों बुद्धिजीवियों द्वारा गाहे बगाहे व्यक्त की जा रही है। प्रिंट मीडिया भी इसकी विसंगतियों को पुरजोर तरीके से लोगों के बीच रख रही है। शिक्षा महकमे से जुड़े लोग भी दबे स्वर में प्रक्रियाधीन युक्तियुक्तकरण की सफलता पर संदेह व्यक्त करने लगे हैं ।व्यक्त हो रही आशंकाएं कदाचित निर्मूल भी नही । स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा 2 अगस्त 2024 को जारी युक्तियुक्तकरण नियम मे संशोधन करने हेतु विभिन्न कर्मचारी संगठनों ने कई- कई बिंदुओ पर अपने सुझाव दिए हैं। शासन को खुले मन से इस पर जरूर ध्यान देना चाहिए।जैसे-प्राचार्य, व्याख्याता, शिक्षक, प्रधानपाठक (प्राथमिक/पूर्व माध्यमिक) के पदों पर सबसे पहले पदोन्नति करने से पद रिक्त होंगे और विभाग में सेवा देने की आस संजोए राज्य के प्रशिक्षित बेरोजगार लोगों को अवसर मिल पायेगा। 2008 के सेटअप जिसमें न्यूनतम छात्र संख्या पर एक प्रधान पाठक एवं चार शिक्षक पदस्थ करने का नियम बनाया गया था, और इसी के आधार पर भर्ती व पदोन्नति विभाग द्वारा की गई है, एक पद घटाने से एक शिक्षक तो स्वमेव अतिशेष हो जाएंगे यह नियम कतई व्यवहारिक नही । यह तो स्पष्टरूपेण राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 का उल्लंघन है, अतः 2 अगस्त 2024 के युक्तियुक्तकरण नियम में न्यूनतम विद्यार्थी संख्या पर भी एक प्रधान पाठक एवं चार शिक्षक का सेटअप स्वीकृत किया जाना ही शिक्षा के बुनियाद को मजबूत करने के लिए श्रेयस्कर होगा।
स्मरणीय है कि 2008 के सेटअप में प्राथमिक शाला में न्यूनतम छात्र संख्या पर एक प्रधान पाठक व दो सहायक शिक्षक का पद स्वीकृत किया गया था। परन्तु वर्तमान में एक पद कम कर दिया गया है यह व्यवहारिक नही है, तथा राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 का उल्लंघन है। 2 अगस्त 2024 के युक्तियुक्तकरण नियम में न्यूनतम विद्यार्थी संख्या पर एक प्रधान पाठक एवं दो सहायक शिक्षक का सेटअप स्वीकृत किया जाना बेहतर होगा। प्रधान पाठक का पद समाप्त करने वाला इस युक्तियुक्तकरण नियम से सहायक शिक्षक व शिक्षक की पदोन्नति 50% तक कम होगी, इससे शिक्षकों के पदोन्नति के अवसर कम होंगे जो पूर्णतः अनुचित है। प्रत्येक प्राथमिक व पूर्व माध्यमिक शाला का स्वतंत्र अस्तित्व हो जिसके नियंत्रण व शिक्षण व्यवस्था के लिए स्वतंत्र प्रधान पाठक जरूरी है, इससे सहायक शिक्षक व शिक्षकों को पदोन्नति भी मिलेगी ।बालवाड़ी संचालित स्कूलों में बालवाड़ी एक व प्राथमिक के पांच अर्थात कुल छह कक्षा के संचालन हेतु न्यूनतम संख्या में भी एक अतिरिक्त सहायक शिक्षक की नियुक्ति उचित प्रतीत हो रहा । युक्तियुक्तकरण नियम 2 अगस्त 2024 के क्रियान्वयन हेतु 28 अप्रैल 2025 को जारी आदेश से शाला में पदों की संख्या कम किया गया है। प्रदेश में 49109 शासकीय स्कूल संचालित है।2008 के सेटअप मे परिवर्तन करने से 49109 शिक्षक के पद स्वतः ही समाप्त हो जाएगा एवं 4700 स्कूल बंद करने से 6000 पद और समाप्त कर दिया जा रहा है इस प्रकार 55000 पद को सरकार के द्वारा समाप्त किया जा रहा है । शासन की मंशा स्पष्ट रूपेण समझ आ रही कि वित्तीय बोझ कम किया जा सके व शिक्षक भर्ती करना ना पड़े।
नई भर्ती नही होना प्रशिक्षित बेरोजगारों के साथ भी अन्याय है। स्वामी आत्मानंद शालाओ में प्रतिनियुक्ति के शिक्षकों व शालाओं पर नियम की प्रभावशीलता पर बड़ा प्रश्नचिन्ह है। युक्तियुक्तकारण से उच्चतर विद्यालय में काम का बोझ बढ़ जाएगा जिससे राष्ट्रीय शिक्षा नीति का पालन सही तरीके से नही हो पायेगा। इस पूरी प्रकिया मे छात्रों के भविष्य पर कुठाराघात होगा।
एक ही परिसर में उच्चत्तर शाला में निचले शाला को मर्ज करना स्वतंत्र शाला के नियंत्रण व शिक्षण व्यवस्था पर विपरीत असर डालेगा। अब जबकि कम रिजल्ट आने वाले ऐसे शालाओं पर प्रशासनिक शिकंजा कसा जा रहा है तो आने वाले वर्षों में संस्था प्रमुख और कितना दबाव झेलेंगे? प मर्ज होने वाली शालाओं के प्रधान पाठक महज सहायक शिक्षक/उच्च श्रेणी शिक्षक के रूप में कार्यरत होंगे।जबकि बिना मर्ज हुए अन्य शालाओं के प्रमुखों की भूमिका पूर्ववत रहेगा।ऐसी दोहरी स्थितियाँ किस करवट बैठेगी।समझ से परे है। साथ ही प्राथमिक शाला व माध्यमिक शाला में न्यूनतम शिक्षक संख्या घटाया गया है।तो क्या इससे इन शालाओ के शिक्षण स्तर में गिरावट नही आएगा? प्रश्नचिन्ह खड़ी नही करता बल्कि आने वाली दुर्दशा के चिन्ह है। जिस शाला में अतिथि शिक्षक कार्यरत है उन्हें पहले अतिशेष माना जाना चाहिए।
शाला मर्ज करने के लिए ग्रामीण क्षेत्र व शहरी क्षेत्र के लिए निर्धारित विद्यार्थी संख्या का मापदंड विसंगतिपूर्ण प्रतीत हो रहा है।स्कूल शिक्षा विभाग को भविष्य में भी शिक्षा व्यवस्था से जुड़े मामलों में एकतरफा आदेश निर्देश जारी करने से पहले कर्मचारी संगठनों शिक्षाविदों से रायशुमारी कर सर्वसम्मत व प्रभावी कदम उठाना चाहिए। बजट कम करने के नाम पर व्यवस्थागत स्तर पर आमूल चूल परिवर्तन करना सर्वथा अव्यवहारिक प्रतीत हो रहा है। समय रहते इस हेतु पालकों ,समाज के लोगों को भी युक्तियुक्तकरण के गुण दोषों को समझने की जरूरत है। नजर आ रहे दोषों का विरोध भी आवश्यक है। भविष्य में युक्तिकरण से किसी भी स्थिति में शैक्षिक गुणवत्ता बढ़ेगी ऐसा तो बिल्कुल भी नजर नही आ रहा।आशाएं कम और आशंकाएं ज्यादा व्याप्त हो रही है । राज्य की पूरी शैक्षणिक व्यवस्था को अनिश्चय की स्थिति में डालने जैसा कदम है। सुदूर गांवों और कस्बों में निवासरत अधिकांश पालक पूरे विश्वास के साथ आज भी अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में पढ़ाते हैं । स्थितियां और परिस्थितियाँ ऐसी भी नहीं कि इस तरह के व्यवस्थागत परिवर्तन आवश्यक हो। शासन की विभिन्न योजनाओं का लाभ छात्रों को मिल रहा है, नित नवीन प्रयोगों से उबासियाँ भरते ,गैर जरूरी कार्यों को करते हुए भी शिक्षकों की भूमिका को नजदीक से देखें तो समझ सकेंगे कि वे विद्यार्थियों का भविष्य गढ़ने के लिए उनकी प्रतिबद्धता कम नही। साथ ही उनकी भूमिका सुविधादाता के रूप में विकसित हो रही है। स्मार्ट क्लासेस की सुविधाओं के साथ ही कैरियर निर्माण की दिशा में व्यवसायिक पाठ्यक्रम ,कम्प्यूटर आदि की गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रभावोत्पादक स्थितियों में है । इन परिस्थितियों में शासकीय बजट को महज कम करने के लिए इस प्रकार की व्यवस्था लाना कदाचित न्याय पूर्ण प्रतीत नही हो रहा है। यदि कहीं छात्र दर्ज संख्या के अनुपात में शिक्षकों की संख्या अधिक हो तो इस पर महकमा को बिना किसी राजनैतिक दबाव के पूरी कड़ाई से कार्यवाही करनी चाहिए । नियम विरुद्ध किए गए ऐसे पदांकन करने वाले जिम्मेदार अधिकारियों के विरुद्ध कार्यवाही से गुरेज नही किया जाना चाहिए। अतिशेष शिक्षकों को वरिष्ठता के आधार पर जहाँ आवश्यक हो पदस्थापना किया जाना उचित होगा। छात्र शिक्षक अनुपात को उचित स्तर पर रखना चाहिए न कि पूरी व्यवस्था को अनिश्चय की स्थिति में झोंक देना सर्वथा अनुचित होगा। कहीं ऐसा तो नही कि शासकीय शालाओं को सोची समझी रणनीति के तहत निजीकरण की ओर ले जाने की पृष्ठभूमि तैयार की जा रही हो ? पिछले कुछ दिनों से पी. पी. पी. (सार्वजनिक निजी भागीदारी ) मॉडल की चर्चा जोरों पर है। वैसे भी शिक्षा जगत के लिए सरकारी बजट अनुत्पादक प्रवृत्ति का माना जाता रहा है। जिस पर निवेश करना कुछ लोगों को बेहद अखरता है। जिस राज्य में शराब दुकानों की संख्या बढ़ाई व स्कूलों की संख्या घटाई जाए हम यह नही कह सकते कि अंजाम क्या होगा राम जाने। यह प्रवृत्ति आने वाले भविष्य के लिए बेहद खतरनाक है। समय रहते ‘काजल आँजते कानी हो जाए ‘ ऐसे जोखिम भरे हाथों के स्पर्श से बच जाने की चेष्टा करना ही बुद्धिमानी है।
कु. तृप्ति साहू ( पं दीनदयाल कालोनी राजनांदगाँव)