परब बिसेस : पोरा के दिन बइला के होथे पूजा, तीजा म तिजहारिन मन रहिथे उपास
रायपुर। छत्तीसगढ़ के जनजीवन म तिहार अउ उत्सव के गजब महत्व हे। जिनगी के हरहर-कटकट ले दूर होके मनखे जब उन्मुक्त खुसी के इजहार करथे त इही ह परब बन जथे। तीज तिहार मानवीय गुन ल इस्थापित कर लोगन मन म प्रेम, एकता अउ सद्भावना ल बढ़ा के वसुधैव कुटुम्बकम अउ आपसी भाईचारा के संदेस देथे। तीज तिहार हमर संवेदना अउ परंपरा के अइसन जीवंत रूप आय जेहा मानव ल मानव ले जोड़े के काम करथे। अनोखा रंग ल समेटे तीज तिहार जिनगी म उमंग अउ उत्साह के नवा लहर ल जनम देथे। ऐतिहासिक, पौरानिक अउ धारमिक विरासत के जीवंत संस्करीति के सूचक कई ठन तिहार अइसे हे जेन सात समंदर पार म घलो हमर सरस अउ सजीले सांस्करीतिक वैभव के परदरसन कर हमन ल गौरवान्वित होय के अवसर देथे। एक तिहार ही अइसे मौका आय जेमा मनखे के सुख-दुख, जिनगी के पीरा, आशा, विश्वास अउ ओकर आस्था ह अभिव्यक्ति पाथे।
किसान अउ किसानी ले जुड़े हे पोरा
भादो महीना के अमावस्या तिथि के पोरा तिहार मनाय जाथे। पोला जेला पोरा घलो कहे जाथे। पोरा तिहार खरीफ फसल के निंदाई गुड़ाई के काम पूरा हो जाय के बाद फसल के बाढ़े के खुसी म मनाय जाथे। ए दिन किसान मन बैला के पूजन कर ओकर प्रति कृतज्ञता अउ आभार व्यक्त करथे। काबर कि बैला मन के सहारे ही खेती कार्य पूरा होथे। पोरा किसान और किसानी ले जुड़े एक परमुख तिहार आय। कहे जाथे कि इही दिन म धान के बाली म दूध भरना सुरू हो जथे। यानी अन्न के देवी इही दिन म गर्भवती होथे। पोरा के दिन माटी ले बने खिलौना, नंदिया बैला, जांता, पोरा मन के पूजा पाठ करे के रिवाज हे। ए दिन बैला मन के सिंगार कर पूजा करे जाथे। पोरा के दिन सांझ के समय गांव के युवती अउ महिला मन अपन सहेली मन के संग गांव के बाहिर मैदान या चौराहा म जिहां नंदी बैल या साहड़ा देव के परतिमा इस्थापित रहिथे उंहा पोरा पटके ल जाथे। पोरा एक परकार ले लोटा के भांति ही होथे जेला माटी ले बनाय जाथे। कुम्हार मन एला चाक म बना के आगी के भठ्ठी म तपा के बनाथे। पोरा म रोटी पीठा भर के पटके के परंपरा हे। एकर पाछू ए मान्यता हे कि पोरा ल खाली नइ पटके जाय। वोमा कुछू न कुछू भरे ल पड़थे। एहा एक प्रकार ले खुसी के इजहार करे के घलो तरीका आय। सादी होय के बाद महिला मन जब ससुराल चले जाथे त मइके म बचपन म खेलइया जम्मो खेलकुद छूट जाथे इही पाय के ओमन ल तीजा पोरा तिहार मनाय बर मइके लाने जाथे ताकि ओमन अपन संगवारी मन संग बचपन ल सुरता करत खिलौना ल खेलत खुसी मना सकय। इही बहाना जुन्ना संगवारी मन संग मुलाकात घलो हो जथे। पोरा के दिन लइका मन जांता पोरा ल खेलत खुसी मनाथे अउ नंदिया बैला म चक्का लगा के ओला दौडा़थे। त उंहे घर-घर म बने छत्तीसगढ़ी पकवान रिस्ता म मिठास घोलत नजर आथे। अगर सामाजिक महत्व के बात करन त पोरा ल गरभाही तिहार के रूप म घलो मनाय जाथे। गरभाही के मतलब गर्भधारन करना होथे। ए दिन किसान मन अपन खेत म चीला घलो चढ़ाथे।
पोरा के पौरानिक मान्यता
पोरा परब के पौरानिक महत्व के बात करन त अइसे किवदंती हे कि ए दिन भगवान कृस्न ल ओकर ममा कंस ह मारना चाहत रहिस। कंस ह कई राक्षस ले कृस्न ऊपर हमला कराइस लेकिन सबो नाकाम रहिस। इही म एक राक्षस रहिस पोलासुर जेकर भगवान कृस्न ह वध कर दे रहिस। एकर बाद इही समय ले भादो अमावस्या ल पोरा के नाम ले जाने अउ माने जाथे।
तीजा म पति के लंबा आयु बर रखथे उपास
हरतालिका तीज के व्रत हर बछर भादो महीना के सुक्ल पक्ष के तृतीया तिथि के दिन मनाय जाथे। हरतालिका तीज व्रत ल तीजा घलो कहे जाथे। ए दिन विवाहित महिला मन अपन पति के लंबा उमर बर उपवास रखथें। हरतालिका तीज के व्रत कठिन व्रत मन ले एक माने जाथे। ए दिन अविवाहित युवती मन घलो मनचाहा वर पाय बर ए व्रत ल रखथे। ए दिन भगवान सिव अउ माता पार्वती के विधि विधान ले पूजा पाठ कर ओकर अराधना करे जाथे अउ पूरा दिन निरजला उपवास रहिके ए व्रत ल पूरा करे जाथे। तीजा के पहिली दिन महिला मन घर-घर जाके करू भात अर्थात् करेला साग म भात खाथे अउ ओकर अगला दिन तीजा उपवास रहिथे। तहान ओकर बिहान दिन फरहार करके व्रत ल तोड़थे। इही दिन गनेस चतुरथी घलो पड़थे। ए दिन तिजहारिन अउ उपसहिन मन ल नवा-नवा लुगरा घलो मइके के डहर ले दे जाथे। महिला मन ए दिन नवा लुगरा के संग सिंगार करे नजर आथे।
तीजा के पौरानिक मान्यता
तीजा ल लेके जेन ऐतिहासिक अउ पौरानिक मान्यता हे ओकर अनुसार माता पार्वती ह बचपन ले ही भगवान सिव ल वर के रूप म प्राप्त करना चाहत रहिस अउ एकर बर ओहा 12 बछर तक कठोर तपस्या करिस। माता पार्वती ए तपस्या के दौरान अन्न अउ जल घलो ग्रहन नइ करिस। एक दिन नारद जी ह पार्वती ल जाके कहिस कि भगवान विस्णु के संग आपके विवाह तय होगे हे। त एला सुनके माता पार्वती निरास होगे अउ एकांत जगह म जाके अपन तपस्या फेर सुरू कर दिस। माता पार्वती सिर्फ भगवान सिव ले ही विवाह करना चाहत रहिस अउ ओला प्रसन्न करे बर माटी के सिवलिंग के निरमान करिस। पौरानिक मान्यता के अनुसार वो दिन हस्त नक्षत्र म भाद्रपद सुक्ल तृतीया के दिन रहिस। माता पार्वती वो दिन व्रत रखके भगवान सिव के स्तुति करिस। तब भगवान सिव माता पार्वती के तपस्या ले प्रसन्न होके ओकर मनोकामना ल पूरा करे के वरदान दिस। पुरान मन म वरनन हे कि हरतालिका तीज के दिन ही माता पार्वती के तपस्या ले खुस होके भगवान सिव ह ओला अपन पत्नी स्वीकार करे रहिस।