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लाल ध्वजा फहरावे भवानी के,
लाल ध्वजा फहरावे माय :-दुरगा देवी दाई के अराधना पर्व…

नवरातर म देवी के अराधना
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कुंवार के महिना अब्बड़ पावन महिना आय । इही महिना म सुक्ल पक्छ के प्रतिपदा ले नौ दिन नौ रथिया म देवी दाई दुर्गा के नव रूप अउ सक्ति के पूजा करेके परंम्परा हेे।हमर पुरखामन देवता धामी  के पूजा-पाठ ल अब्बड़ आस्था अउ बिस्वास ले करत आवत हे।
        बछर म चार ठन नवरातरी आथे।तेमा चइत, कुवांर हर जागरित नवरातरी हवय।जेखर अब्बड़े महतम हवय।इही नवरातरी म तीन ठन देवी, धन के  देवी लछमी ,बुद्धि के देवी सरस्वती अउ सक्ति के देवइया देवी दाई दुर्गा के नव रूप के नव  दिन, नव रथिया पूजा करे जथे।
नवरातरी के एकम के दिन ले जसगीत अउ देवी दाई के सेवा गीत ल गाये जथे।
‘सिंह सवारी चढ़ी आवे, भवानी मां, सिंह सवारी चढ़ी आवे हो माय….
जो मय जानतेव मोरो मइया आये हे, मोरो मइया आये हे ,मोरो दुरगा आये हे,
सुरहिन गइया के गोबर मंगाइ के,
खूंट धरि अंगना लिपातेव हो माय,
सुघ्घर चउक पुरातेव भवानी के,
सोन के करसा मढ़ातेव हो माय…
लाल ध्वजा फहरावे, भवानी के लाल ध्वजा फहरावे माय…’

    दुरगा दाई जम्मो दुख ल हरइया हवय।कुंवार के महिना म हमर छत्तीसगढ़ म दुरगा दाई के माटी के  मूरती ल पंडाल म स्थापित कर के,करसा स्थापना अउ पंचमी सिंगार के विसेस महतम हवय। पंचमी के दिन इही जस गीत लगाए जथे-…….
‘माता फूल गजरा गूंथव हो मालिन के देहरी ,
हो फूल गजरा।
काहेन फूल के गजरा काहेन फूल के हार ।
काहेन फूल के माथ मकुटिया सोलहोंं सिंगार….
चंपा फूल के गजरा चमेली फूल के हार,
जसवंत फूल के माथ मकुटिया , सोलहों सिंगार….
माता फूल गजरा….।’ अस्टमी के दिन हुमन-जग ,हुमन-पूजा करे जथे.नव दिन, नव रथिया देबी दाई दुरगा ल खुस करेबर ,उंखर किरपा ल पाय बर देबी जस गीत अउ जगराता करे जथे।

‘मइया धर के कमंडल ब्रम्हा खड़े तोर दुवारे हो माय….
काहेन तोर दंड कमंडल काहेन के मृग छाला, काहेन के तोर बेन बांसुरी काहेन के जयमाला,
हो मइया धरके कमंडल ब्रम्हा खड़े हे तोर दुवारे हो माय…
काठ तुमा के दंड कमंडल, मृरगा के मृग छाला,हरियर बांस के बेन बांसुरी, तुलसी के जयमाला …
हो मइया धर के कमंडल ब्रम्हा खड़े तोर दुवारे हो माय….।’ माता दाई के सेवा सत्कार ले नवा जिनगी अउ नवा खुसी मिलथे।घर परिवार म सुख हर बाढ़थे.धन-धान ले भरपूर हो जथे।

   जवांरा के जसगीत म देवी धनैया अउ देवी कोदैया के नाव लिहे जथे।जइस इही जवांरा गीत आय।
लिमवा के डारा म गड़ेला हिंड़ोलवा…..
कवन ह झूले कवन ह झूलाये,
कवन ह देखत आय।
बूढ़ी माई झूले, कोदैया माय झुलावे, धनैया माय देखत आय….

       गाँव के मंदिर सितला दाई म नव दिन-नव  रथिया म जोत जलथे अउ जंवारा बोय जथे। अस्टमी हुमन पूजा करके नवमी के दिन जवांरा ल बड़ धूम धाम ले लोगन मन बाजा-गाजा ताना-बाना धरे अउ महतारी-नोनी मन जोत जवांरा करसा ल मुड़ी म धरे ,नदिया -तरिया म ठंडा करथे।

‘गंगा नहाये बर हो, माता दुरगा आवे गंगा नहाये बर हो…
कहां ले आवय माता सरस्वती, कहां ले आवय लछमी, कहां ले आवय मोर दुरगा भवानी, गंगा नहाये बर हो…..
‌ब्रम्हा लोक ले माता सरस्वती, बिस्नु लोक ले लछमी, सिव लोक ले मोर दुरगा भवानी , गंगा नहाये बर हो …
‌माता दुरगा आवे गंगा नहाये बर हो……’

‌नवरातरी परब म देवी दाई ल सुमिरथे के जम्मो संसार म सुख सान्ति आवय।
         सक्ति उपासना के इही परब हवय.कुवांर के नवरातरी सुक्ल पक्छ प्रतिपदा ले नव दिन नव रतिहा देवी उपासना हरे। इही दसमी तिथि म भगवान राम हर रावन के वध ल करे रिहिस अउ लंका ल जीत के विजय के पताका फहिराय रिहिस। बुराई म अच्छाई के जीत के इही परब ल दसहरा के तिहार कहे जथे। इही तिहार ल हर बछर पुरखा मन बुढ़तकाल ले मनावत आवथ हे।
  
आवव इही तिहार म देवी दाई के अराधना करन अउ जम्मो संसार बर मंगलकामना करन।
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                    लेखिका
         डॉ. जयभारती चन्द्राकर
साहित्यकार ,छत्तीसगढ़

सहायक प्राध्यापक     रायपुर,छ.ग.
         

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