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कोन्दा भैरा के गोठ – सुशील भोले

–आज भगवान राम ह अयोध्या म पॉंच सौ बछर के पाछू बालरूप म बिराजत हे जी भैरा.. एकरे सेती ए पबरित बेरा म इहाँ के उंकर ममियारो ‘चंदखुरी’ के गजब सुरता आवत हे, के एकर नॉव ‘चंदखुरी’ कइसे धराइस होही?
-ठउका बात ल जाने के विचार उठत हे तोर मन म जी कोंदा.. कतकों गुनिक मन के कहना हे के चंदखुरी नॉव ह भगवान राम के बालपन म इहाँ के धुर्रा-माटी म खेले के सेती ही धराए हे.
-कइसे भला?
अरे भई.. जब लइकई म माता कौशल्या संग भगवान तीजा-पोरा माने बर इहाँ आवय, त बिहनिया ले लेके संझौती गरुवा धरसत बेरा ले उंकर मन के खुर म उड़त धुर्रा-माटी म खेलत राहय.
-अच्छा..!
-हव.. रामचंद्र के चंद्र अउ गरुवा के खुर ले उड़ियावत धुर्रा जेला खुरी कहे जाथे.. ए दूनों ले मिल के होगे- चंद्रुखुरी… इही चंद्रखुरी ह लोकरूप धरत ‘चंदखुरी’ होगे.