अन्य

कोंदा भैरा के गोठ – व्यंग्यकार सुशील भोले..

देखत हस जी भैरा.. जब ले महिला आरक्षण बिल ह संसद म पेश होय हे, तब ले हमर इहाँ के सियानीन ह ए बछर के चुनाव ल महिच ह लड़हूं कहिके रोम्हिया दे हे.
-बने तो आय जी कोंदा.. जब वो मन घर-परिवार ल सुघ्घर असन चला-सम्हाल सकथें, त देश ल काबर नहीं? बपरी मन सूत के उठते छरा-छिटका, गोबर-कचरा ले लेके रात के सोवा परत बेर अपन आदमी के मुरसरिया के खाल्हे म लोटा भर पानी के रखत तक कतेक जिम्मेदारी के साथ बुता करथें तेला. मोला पूरा भरोसा हे, देश खातिर घलो अइसने करहीं.
-फेर हमन गाँव के पंचइती म सरपंच-पति ल जम्मो कारज ल करत देखथन अउ बपरी सरपंचइन ह मुड़ ल ढांक के वोकर पाछू म मुस्की ढारत खड़े रहिथे. कहूँ संसद मन म घलो अइसने नजारा देखे बर मिल जाही त?

  • अइसन कुछू नइ होवय संगी.. धीरे धीरे उन सबो ल सीख जाहीं.. अरे एक पइत म नहीं ते दू पइत म, फेर सीखहीं जरूर. देखथस नहीं अब उही सरपंचइन ल दुसरइया बेर म सबो बुता ल कइसे खुदेच कर डारथे तेला.

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button