कोन्दा भैरा के गोठ -सुशील भोले

–अब जिनगी के संझौती बेरा म धरम के कुछू ठोसहा बुता करे के मन होथे जी भैरा.
-ए तो बने बात ए जी कोंदा.. अउ मोला लागथे के लोगन ल धरम के नॉव म बगरे डर, अज्ञानता अउ अंधविश्वास ले बचाय के उदिम ह सबले ठोसहा बुता हो सकथे.
-वो कइसे?
-चाहे कोनो धरम-पंथ हो सबो म लोगन ल देवी-देवता के नॉव म डरवाए, भरमाए अउ अंधविश्वास म बोरे के जादा चलन देखे ले मिलथे. अइसे करबे त अइसे हो जाही अउ अइसे नइ करबे त दइसे. भइगे.. अतके के नॉव ले ही लोगन चमकथें-झझकथें अउ उंकर भंवरलाल म अरझत जाथें, अपन सरी जिनिस अउ जिनगी ल उंकर बहकावा म खिरोवत जाथें.
-तोर कहना वाजिब आय संगी.. देवी-देवता मन कोनो दुष्ट-चंडाल नइ होय जेमा उन फोकटे-फोकट कोनो ल दुख-तकलीफ या पीरा देहीं. उन तो लोक कल्याण अउ सुख-शांति के पोषक होथें. असल म ए तो जे मन देवी-देवता मन के आड़ म अपन रोजगार चलाथें ना वोकर मन के बगराय भरम-जाल होथे. आज जरूरी हे, लोगन ल अइसन भरम जाल ले निकाले जाय. आज के बेरा म इही सबले बड़े धरम कारज आय.