कोन्दा भैरा के गोठ – सुशील भोले

-लोगन ल अगुवा बन के मुड़ म पागा खापे के गजब साध रहिथे जी भैरा.
-ए तो मानव स्वभाव आय जी कोंदा.. कोनो पगबंधी के पागा अउ पगरईती के पागा के अंतर ल भले नइ समझय, तभो ले अस्मिता के रखवार होय के रूप म अपन आप ल सबले बड़का गुनिक अउ सबले जादा योग्य मानथे.
-हव जी संगी.. महूं ल अइसने जनाथे, तभे तो उन ए बात ल समझ नइ पावंय के पगबंधी कोनो मनखे के मरे के बाद दशगात्र के दिन वोकर बड़े बेटा या उत्तराधिकारी के मुड़ म खापे जाथे, जबकि पगरईती के पागा वोकर मुड़ म खापे जाथे, जे ह कोनो बड़का बुता या कारज के सियानी करे खातिर सबले योग्य अउ गुनिक जनाथे.
-हव जी.. हमन ल अइसन नासमझ लोगन के सियानी ले बांच के रेहे बर लागही.. अइसन मन के हाथ म अपन अस्मिता ल रखवारी ल सौंपे नइ जा सकय.
-सही आय संगी.. सड़क म वानर सेना बरोबर उछल कूद करना आने बात आय अउ कोनो गंभीर विषय म कारज करना आने बात.