कोन्दा भैरा के गोठ-सुशील भोले

–चलना रावनभांठा डहार नइ जावस जी भैरा?
-फेर अभी तो विजयादशमी ह गजब दिन बांचे हे ना जी कोंदा?
-अरे.. का बताबे गा, ए बछर रावन बनवाय के जोखा ल मुही ल सौंप दे हे नेताजी ह. वो काहत रिहिसे- हमर पारा के रावन ल वो पारा के रावन ले ऊंचहा बनाना हे.
-अच्छा.. फेर तुमन ए बात ल जानथौ का के विजयादशमी अउ दशहरा परब ह दू अलग-अलग प्रसंग के सेती मनाए जाथे?
-नहीं भई.. हमन तो राम-रावन के छोड़े अउ कुछूच ल नइ जानन.
-हाँ.. असल म राम-रावन वाले परब ह विजयादशमी आय अउ दशहरा ह दंस+हरा माने दंसहरा अर्थात विषहरण के परब आय. फेर हमर मन के अज्ञानता के सेती ए दूनों परब ल संघार के एकमई कर दिए गे हे.
-वाह भई!
-समुद्र मंथन ले निकले विष के पान करे सेती भोलेनाथ ल नीलकंठ कहे गे रिहिसे ना.. तेकरे सेती ए परब के दिन नीलकंठ माने टेहर्रा चिरई ल देखना शुभ माने जाथे. अउ विषहरण के पॉंच दिन पाछू फेर अमरित पाए के परब शरदपुन्नी के रूप म मनाथन, काबर के विषहरण के पॉंच दिन बाद समुद्र मंथन ले अमृत निकले रिहिसे.