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कोन्दा भैरा के गोठ – व्यंग्यकार सुशील भोले…

  • सियनहा दिवस के जोहार जी भैरा.
    -जोहार जी कोंदा. फेर ए सियनहा दिवस का होथे, नवा जिनिस सुनत हौं.
  • वाह.. आज 1 अक्टूबर ल हमरे असन सियनहा मन के देखरेख के चेत कराए बर अंतर्राष्ट्रीय वृद्ध दिवस मनाए जाथे न जी.. फेर का बात हे संगी, तैं तो आजो बने टन्नक दिखत हस? अउ एदे मोला देख.. पेट ह कोहड़ा बरोबर फूलत जावत हे.
    -तोर अउ मोर उमर तो एके हे जी संगी, फेर तोर रहन-सहन मोर म अंतर हे..
    -वो कइसे?
    -तैं ह नौकरी ले रिटायर होगेंव कहिके घर म खुसरे रहिथस. खाथस-पीथस अउ गोड़ लमाके सूते रहिथस. अउ मोला देख, आजो नानमुन काम-बुता ल तो करतेच रहिथौं उप्पर ले मोर लिखना-पढ़ना अउ एती-तेती के कार्यक्रम म जवई ल घलो बढ़ा दिए हौं. अब तहीं बता, अइसे म मोर देंह-पाॅंव बने टन्नक दिखही के नहीं?
    -हव जी, तोर कहना तो सही आय.
    -अरे बइहा इही उमर म सक्रियता अउ जादा जरूरी होथे, जिहाॅं अलाली करे त वो तोला पूरा के पूरा बइठार देही.

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