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सवालों के “⭕️” में…..जमीनों का फर्जीवाड़ा कर करोडों कमाने वाले चौरसिया बंधुओं पर कब होगी कार्रवाई..?आखिर क्यों व्यवसायिक डायवर्सन कराये जाने की प्रक्रिया में दस्तावेजों में किया गया फर्जीवाड़ा नहीं हुआ उजागर…!रायगढ़ में आबंटित आदिवासी भूमि को फर्जी दस्तावेजों के सहारे गैर आदिवासी व्यक्तियों चौरसिया बंधुओं के खिलाफ़ पंजीकृत बयनामा किये जाने की हुई है प्रमाणिक शिकायत…चौरसिया बंधुओं सहित राजस्व व पंजीयन विभाग के अधिकारियों/कर्मचारियों की है संलिप्तता…पंजीयन के बाद डायवर्सन भी अवैधानिक रूप से कराया…उचित और निष्पक्ष कार्यवाही यदि हो तो भारतीय न्याय संहिता की गंभीर एवं गैर ज़मानतीय धाराओं अंतर्गत चौरसिया बन्धुओं को हो सकती है जेल…!


#शासकीय आबंटित एवं आदिवासी  की भूमि को तत्कालीन पटवारी एवं उप पंजीयक के अनैतिक गठजोड़ से चौरसिया बन्धुओं ने दस्तावेजों में हेर-फेर कर ग़ैर आदिवासी बना कर कौड़ियों के मोल खरीदा…

#यही नहीं अवैधानिक रूप से क्रय  की गई भूमि का डायवर्सन भी कराया जबकि व्यावसायिक डायवर्सन कराये जाने की प्रक्रिया में दस्तावेजों में किया गया फर्जीवाड़ा उजागर किया जाकर उसी समय अपराध दर्ज होना चाहिए था…

रायगढ़  1 अगस्त 2025
आपको बता दें कि पिछले दिनों जिले के ग्राम लाखा, पटवारी हल्का क्रमांक 28, तहसील व जिला रायगढ़ के अंतर्गत आने वाली आदिवासी भूमि खसरा नंबर 13/8, रकबा 0.809 हेक्टेयर की फर्जी खरीदी-बिक्री का मामला उजागर हुआ है।
शिकायतकर्ता कौशल मेहर, ग्राम गेरवानी निवासी ने जिलाधीश रायगढ़ को एक लिखित शिकायत प्रस्तुत करते हुए आरोप लगाया है कि उक्त भूमि जो मूलतः महंगु भुईहर पिता घसिया भुईहर (अनुसूचित जनजाति) के नाम पर दर्ज थी, उसे फर्जी दस्तावेजों के माध्यम से गैर-आदिवासियों द्वारा खरीदा गया।शिकायत के अनुसार, महंगु भुईहर के आधार कार्ड में से “भुईहर” जाति उपनाम को मिटाकर, सिर्फ “महंगु” पिता “घसिया” लिखा गया और जातिगत रूप से गैर-आदिवासी ‘घसिया’ दिखाया गया, जिससे आदिवासी भूमि को गैर-आदिवासी क्रेताओं को बेचना वैध प्रतीत हो। इस कूटरचना के आधार पर दिनांक 20.11.2023 को रायगढ़ उप-पंजीयक कार्यालय में रजिस्ट्री कराई गई। यह भी आरोप है कि हल्का पटवारी द्वारा खसरा नक्शे में हेरफेर कर भूमि को सड़क से लगाकर दर्शाया गया, जिससे उसकी वाणिज्यिक कीमत बढ़ाई जा सके। आरोपियों को इससे लाभ पहुंचाने की मंशा से यह किया गया। तहसीलदार और उप-पंजीयक की मौन स्वीकृति अथवा लापरवाही भी संदेह के दायरे में है।

दस्तावेजों में कूटरचना कर अनैतिक लाभ लेने वाले व्यक्ति

  1. श्रीराम चौरसिया पिता मोहन भगत, निवासी खैरपुर रोड, पतरापाली
  2. संजु कुमार चौरसिया पिता श्रवण कुमार चौरसिया, निवासी खैरपुर
  3. बिट्टु कुमार चौरसिया पिता सुरेन्द्र प्रसाद, निवासी खैरपुर
  4. मंटु कुमार चौरसिया पिता मोहन भगत, निवासी जमशेदपुर
  5. दविंदर सिंह पिता स्वर्ण सिंह, निवासी जमशेदपुर

यह कार्य न केवल भारतीय दंड संहिता की धारा 420, 467, 468, 471, 120B, 166, 167 के अंतर्गत दंडनीय है, बल्कि यह SC/ST अत्याचार निवारण अधिनियम 1989 की धारा 3(1)(f), 3(1)(g), 3(1)(q) तथा छ.ग. भू-राजस्व संहिता की धारा 170( ख) का भी गंभीर उल्लंघन है।

यदि हम वर्तमान में भारतीय न्याय संहिता की बात करें तो भी उक्त अपराध निम्नांकित धाराओं के अंतर्गत गंभीर एवं गैर ज़मानतीय है। विधि विशेषज्ञ के अनुसार इस गंभीर मामले में चौरसिया बन्धुओं एवं संलिप्त अन्य व्यक्तियों पर भारतीय न्याय संहिता की निम्न धाराओं के तहत मामला दर्ज किया जाकर गिरफ्तार किया जा सकता है तथा दोष सिद्ध होने पर 7 से 10 वर्षों तक अथवा आजीवन जेल की हवा खानी पड़ सकती है।

क्या हैं भारतीय न्याय संहिता की धाराएँ एवं सजा का प्रावधान:-



1 धारा 316(1)
छल या धोखे से संपत्ति प्राप्त करना संज्ञेय, गैर-जमानती 7 वर्ष तक कारावास + जुर्माना FIR दर्ज → गिरफ्तारी → विवेचना → न्यायालय में मामला
2 धारा 335
जालसाजी करना (संपत्ति दस्तावेज) संज्ञेय, गैर-जमानती 10 वर्ष से लेकर आजीवन कारावास + जुर्माना दस्तावेज जब्त → फोरेंसिक जांच → अभियोजन
3 धारा 336
जाली दस्तावेज का प्रयोग संज्ञेय, गैर-जमानती 10 वर्ष तक कारावास + जुर्माना उपयोगकर्ता को जालसाज की तरह दंडित किया जाएगा
4 धारा 173
आपराधिक षड्यंत्र संज्ञेय (सह-अपराध संज्ञेय हो तो), जमानती/गैर-जमानती संबंधित अपराध के अनुसार सह-साजिशकर्ता पर मुख्य अपराध के समान मुकदमा
5 धारा 269
लोक सेवक द्वारा विश्वासघात संज्ञेय, गैर-जमानती 10 वर्ष या आजीवन कारावास + जुर्माना दोषी सरकारी कर्मचारी पर विभागीय जांच, निलंबन व अभियोजन
6 धारा 111
अनुसूचित जनजाति की भूमि से संबंधित अपराध संज्ञेय, गैर-जमानती 5 वर्ष से लेकर आजीवन कारावास + अर्थदंड विशेष SC/ST न्यायालय में सुनवाई, अग्रिम जमानत नहीं

कलेक्टर के संज्ञान में इतना गंभीर मामला आने के बावजूद भी प्रशासनिक चुप्पी समझ से परे है जबकि होना तो य़ह चाहिए था कि कलेक्टर कार्यालय से संबंधित विभागों से जानकारी मंगाई जाकर पुलिस को जाँच हेतु पत्र प्रेषित किया जाना था।इसी लचर कार्यशैली एवं व्यवस्था के कारण रायगढ़ जिला आज माफियाओं के लिए स्वर्ग बन चुका है चाहे वह क्षेत्र कोई सा भी क्यूँ न हो।

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