उम्मीदें किसी पर बोझ न बन जाएं ख़ुद को सम्हालो यारों…संदर्भ:- “ओपी है तो उम्मीद है”- यशवंत खेडुलकर

भूतपूर्व कलेक्टर एवं रायगढ़ विधानसभा से भाजपा के प्रत्याशी ओमप्रकाश चौधरी की रिकार्डतोड़ विजय का होना एवं भारत सरकार के गृहमंत्री अमित शाह का रायगढ़ की जनता से किया गया वादा कि “आप इन्हें चुनाव जितायें मैं बड़ा आदमी बनाउंगा” ने “ओपी है तो उम्मीद है” के नारे को इतना बल दे दिया कि कल तक जो धुर विरोधी थे और ओपी के कपोल कल्पित कहर से बचने मतदाताओं को वोट न देने की अपील कर रहे थे, वे भी ओपी के जीतते ही उम्मीद पाल बैठे हैं।ओपी के मुख्यमंत्री बनने की मात्र संभावना से ही खुद को लानत मलामत भेजते विरोधियों और भीतरघातियों ने नजदीकी बढ़ाने दाएं बाएं का रास्ता तलाशना आरम्भ कर दिया है।यहाँ ये बताना भी लाज़िमी है कि रायगढ़ के मतदाताओं को बरगलाने ओपी चौधरी को बाहरी,डिक्टेटर निरूपित करते हुए प्रचारित किया गया था।सोशल मीडिया में तो कभी पेड न्यूज के सहारे बाकायदा एक कैम्पेन चलाया जा रहा था।यही नहीं भाजपा से टिकट न मिलने से हुई बागी प्रत्याशी गोपिका गुप्ता को चुनावी रेस में बनाये रखने संसाधनों सहित धनबल भी मुहैया कराया जा रहा था। अब जब रायगढ़ की जनता ने उन्हें भरपूर दुलार देते हुए कॉंग्रेस प्रत्याशी और पूर्व विधायक प्रकाश नायक के मुकाबले दोगुने वोट देकर प्रचंड बहुमत से विजयी बनाया तो विरोधियों,भीतरघातियों के सुर बदले बदले से सुनाई देने लगे।विरोधी अब कूटनीतिक चाल चलते हुए ओपी चौधरी का महिमामंडन करने लगे हैं एवं कूटनीतिक दाँव खेलते हुए ओपी चौधरी को कहर वाले साहब से इतर अलौकिक गुणों से युक्त जादू की छड़ी धारी महामानव बतलाने में लगे हैं।ओपी चौधरी के विज़न पर आम जनता की आस को विकास के ऐसे आयामों की उम्मीदों का चोला पहनाने की कोशिश कर रहे हैं जिसे पूरा करना किसी एक अकेले व्यक्ति, विधायक, मंत्री अथवा मुख्यमंत्री के लिए संभव ही नहीं है।ऐसा इसलिए भी कहा जा सकता है कि भ्रष्ट और लगभग सड़ चुके सरकारी तंत्र में आमूल चूल परिवर्तन लाये बगैर और सबके सामूहिक प्रयास के बिना यह असंभव ही है।चूँकि ओपी चौधरी शासकीय सेवारत रहने के दौरान से ही शिक्षा के क्षेत्र में काफ़ी कार्य किये हैं शिक्षित युवाओं के आदर्श होने के साथ साथ आम जनमानस में भी उनकी छवि शिक्षादूत के रूप में बनी हुई है।अब जब छत्तीसगढ़ में उनकी सरकार सत्ता सम्हालने जा रही है जिसमें स्वयं ओपी चौधरी का कद काफी बड़ा रहने वाला है तो लोगों की उम्मीदों को पंख लगना स्वाभाविक है लेकिन उम्मीदों को ज़्यादा हवा देने से ये उम्मीदें ओपी चौधरी के लिए पहाड़ बन सकती है और इसके बोझ तले उनका विज़न कुचला भी जा सकता है।स्वयं ओपी चौधरी के समक्ष अपने विज़न अनुरूप कार्य करने में निम्न चुनौतियां रहेंगी जिसके चलते विकास की दौड़ बाधित होती रहेगी जिससे विरोधियों का छवि धूमिल करने का प्रयास परवान चढ़ेगा :-
1 ओपी चौधरी एक राजनीतिक दल के अंग हैं जिसकी रीति नीति और एजेंडे के मुताबिक ही उन्हें दायरे में रहकर कार्य करना होगा।
2 भ्रष्ट सरकारी तंत्र – जिसकी पीठ पर सवार होकर ही किसी भी सरकार को विकास की दिशा में कदम बढ़ाने की मजबूरी होती है उसे अकेले ओपी चौधरी नहीं सुधार सकते।
3 लोकसभा चुनाव के लिए पार्टी हित में कार्य करना – आगामी छह महीने में लोकसभा चुनाव होने वाले हैं जिसकी तैयारी और कार्यो की व्यस्तता स्वाभाविक रूप से विधानसभा क्षेत्र में समयाभाव पैदा करेगी।
ऐसे ही अनेकों चुनौतियों सहित पारिवारिक,सामाजिक जिम्मेदारी सम्हालते हुए ओपी चौधरी जनता की अपेक्षाओँ और उम्मीदों पर खरा उतरेंगे ऐसा विश्वास किया जा सकता है किंतु उम्मीदों का बोझ उनपर लादा न जाये ये हमारी भी नैतिक जिम्मेदारी बनती है।