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रायगढ़ तहसील कार्यालय में “अवैध..” रूप से कार्यरत व्यक्ति गोपी सिदार पर भ्रष्टाचार के आरोप, तहसीलदार पर भी सवाल…!हैरानी की बात सरकारी विभागों/न्यायालयों में यदि ऐसे हैं घुसपैठिए तो गोपनीयता और विश्वसनीयता की उम्मीद किससे..?कौन दे रहा है तनख्वाह..? और यदि इस महँगाई के दौर में बिना तनख्वाह अथवा पारिश्रमिक के कोई कर रहा है काम… तो मिलना चाहिए ऐसे लोगों को गणतंत्र दिवस पर “भारत का सर्वोच्च सम्मान”..

#नायब तहसीलदार न्यायालय में लंबित फाइलों को छुपाने का है आरोप..

# प्रकरणों की फाइल खोजने के बहाने  पारिश्रमिक के तौर पर ली जाती है किसानों, पक्षकारों से रिश्वत...

# इनके हैं रेट फिक्स:- जल्दी पेशी तिथि लेना,प्रकरण में नोटशीट बनाना,मनचाहा आदेश टाइप करना,साहब के दस्तखत करवाना इत्यादि…

# सूत्रों के अनुसार गोपी सिदार के अलावा अनुविभागीय अधिकारी( राजस्व)/ तहसील कार्यालय रायगढ़ में तीन और कर्मचारी अनाधिकृत रूप से हैं कार्यरत..

#इन अनाधिकृत रूप से कार्यरत कर्मचारियों की जानकारी छुपा रहे हैं तहसीलदार- चाहे कितना भी कर लो पत्राचार..


रायगढ़, छत्तीसगढ़
जिला रायगढ़ के तहसील कार्यालय में एक अवैध रूप से कार्यरत व्यक्ति द्वारा भ्रष्टाचार में संलिप्त होने का मामला सामने आने के बाद अब यह विवाद प्रशासनिक स्तर तक जा पहुँचा है। गोपी सिदार नामक यह व्यक्ति, जो किसी भी सरकारी आदेश, नियुक्ति या संविदा के तहत कार्यरत नहीं है, तहसील कार्यालय में न्यायालयीन कार्यों में खुलेआम संलग्न पाया गया है।

प्राप्त जानकारी के अनुसार, गोपी सिदार को नायब तहसीलदार  के न्यायालय में कंप्यूटर ऑपरेटर के रूप में कार्य करते हुए देखा जा सकता है। आरोप है कि वह पक्षकारों और किसानों से फाइलें खोजने, तिथि जल्दी लगाने और प्रकरणों को शीघ्र निपटाने के नाम पर रिश्वत की माँग करता है। यह स्थिति न केवल अवैधानिक है बल्कि तहसील कार्यालय की कार्यप्रणाली पर गंभीर प्रश्नचिह्न भी लगाती है।

कौन दे रहा है तनख्वाह या पारिश्रमिक..

सूत्रों के मुताबिक गोपी सिदार को नायब तहसीलदार  के न्यायालय में कंप्यूटर ऑपरेटर के रूप में कार्य करने के बदले आधिकारिक रूप से तनख्वाह या पारिश्रमिक नहीं मिलता है।चूँकि संविदा नियुक्ति अथवा कलेक्टर दर पर सरकारी विभागों में कर्मचारी नियुक्ति का प्रावधान है किन्तु इस पूरे प्रकरण में ऐसी किसी भी नियुक्ति संबंधी आधिकारिक पुष्टि किसी भी अधिकारी द्वारा नहीं की गई है।ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि यदि गोपी सिदार बगैर पारिश्रमिक के कैसे नायब तहसीलदार के न्यायालय में कंप्यूटर ऑपरेटर का कार्य वर्षों से करता आ रहा है और अपने निजी और घरेलू खर्चों की पूर्ति के लिए क्या उसे पैसों की आवश्यकता नहीं पड़ती है?

शिकायत के आधार पर जानकारी लेने पहुंचे पत्रकारों के समक्ष तहसीलदार शिव कुमार डनसेना की हैरान करने वाली  प्रतिक्रिया…

जब इस विषय को लेकर पत्रकारों द्वारा तहसीलदार  शिव कुमार डनसेना से जानकारी लेने का प्रयास किया गया, तो उनके द्वारा अपेक्षित पारदर्शिता दिखाने की बजाय “उल्टा चोर कोतवाल को डांटे” की तर्ज पर प्रतिक्रिया दी गई। तहसीलदार  द्वारा पत्रकारों के समक्ष मामले को टालने और व्यस्तता की आड़ में दबाने की कोशिश की गई, जिससे यह संदेह और गहराता जा रहा है कि कहीं इस अवैध गतिविधि को प्रशासनिक संरक्षण तो प्राप्त नहीं है।

इस पूरे मामले में शिकायतकर्ता द्वारा जिला कलेक्टर से निम्न बिन्दुओं पर माँग की गई है कि:

  1. गोपी सिदार की स्थिति और कार्यदायित्व की निष्पक्ष जांच कराई जाए।
  2. यदि वे अधिकृत रूप से नियुक्त नहीं हैं, तो उन्हें कार्य में लगाए रखने वाले संबंधित अधिकारी/कर्मचारियों पर प्रशासनिक कार्रवाई की जाए।
  3. तहसील कार्यालय की कार्यप्रणाली में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित की जाए।

बहरहाल राजस्व न्यायालय में किसी बाहरी व्यक्ति का अनाधिकृत रूप से कार्य करना  न केवल भ्रष्टाचार और न्यायालय की गोपनीयता के भंग होने का बल्कि प्रशासनिक अकर्मण्यता का जीता जागता उदाहरण है।पूर्व की शिकायतों की लंबी फेहरिस्त में एक और शिकायत जुड़ने के बाद देखना यह होगा कि जिला प्रशासन इस गंभीर मामले पर क्या कदम उठाता है।


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