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सादगीपूर्ण वन जीवन का अनुभव करने के लिए संतों को वनांचल में जाना चाहिएः अवधेशानंद

महाकुंभ नगर। जूना अखाड़ा के पीठाधीश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि महाराज ने बृहस्पतिवार को कहा कि जैसे सभी जनजाति बंधु अपनी परंपरा और संस्कृति लेकर सहज भाव से महाकुंभ में आए हैं वैसी ही निर्मलता और सादगीपूर्ण वन जीवन का अनुभव करने के लिए सभी संतों को बार-बार वनांचल में जाना होगा। अखिल भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम द्वारा यहां आयोजित युवा कुंभ को संबोधित करते हुए स्वामी अवधेशानंद गिरि ने कहा कि जनजाति समाज के साथ समरसता के बिना सनातन संस्कृति का यह महाकुंभ पूरा नहीं होगा। उन्होंने कहा, “हम सभी संतों को बार-बार वनांचल में जाकर वनवासियों के साथ घुलना-मिलना होगा और साथ-साथ भोजन करना होगा क्योंकि हम एक ही सनातन परंपरा के अभिन्न घटक है।” इस अवसर पर अपने विचार रखते हुए भारत सरकार के जनजाति कार्य मंत्रालय के राज्यमंत्री दुर्गादास ऊईके ने कहा, “पर्दे के पीछे से कार्यरत असामाजिक शक्तियां जनजाति समाज को बहला-फुसलाकर सभी मायने में बदलने का प्रयास कर रही हैं। इसके खिलाफ युवाओं को पहल करनी चाहिए।” अखिल भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम के राष्ट्रीय अध्यक्ष सत्येंद्र सिंह ने यहां आए युवाओं से संवाद करते हुए कहा, “हम अपने समाज के बारे में जो जानते हैं, मानते हैं, उसे विभिन्न माध्यमों से प्रस्तुत करना आवश्यक है।” कार्यक्रम में लक्ष्मणराज सिंह मरकाम, जितेंद्र ध्रुव, मीना मुर्मू, डाक्टर राम शंकर उरांव, अरविंद भील आदि ने अपने विचार रखे। इस दौरान, वनवासी कल्याण आश्रम के वरिष्ठ कार्यकर्ता और हाल ही में पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित चैतराम पवार जी का स्वामी अवधेशानंद जी ने विशेष सम्मान भी किया।

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