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छत्तीसगढ़ी रचना…बोहार होथे गुणकारी…

गरमी मा मिलथे बोहार। राँधव सुग्घर भूँज बघार।।
कोंवर पाना बड़ लसदार।दही मही सन डालव दार।।

जुड़हा पाचुक येला जान। समझ पेट बर गा वरदान।।
गुरतुर कस्सा फर के स्वाद। कतका गुण हे भरे अगाद।।

भाजी मा राजा बोहार। हवय विटामिन के भरमार।।
कोंवर पाना हे उपचार। बंद होय कतको अतिसार।।

येकर फर के जानव भेद। सुक्खा खाँशी देथे खेद।।
कृमि नाशक बनके बड़ सूर। पीरा करथे तुरते दूर।।

फर के बनथे घलो अचार। करथे पाचन तंत्र सुधार।।
पेड़ छाल जे पीस लगाय। तन के खुजली दूर भगाय।।
विजेंद्र कुमार वर्मा
नगरगाँव (धरसीवाँ)

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