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अंतरिक्ष में मूंग-मेथी के बीज क्यों ले हैं गए शुभांशु? इन 7 चीजों की करेंगे खोज

नई दिल्ली: भारतीय यात्री ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला Axiom 4 मिशन के तहत आंतरिक्ष यात्रा पर गए हैं। सब कुछ सही रहा तो शुभांशु अगले 14 दिनों के लिए अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) रहेंगे। आंतरिक्ष यात्रा के दौरान नासा अंतरिक्ष यात्रियों को केवल जरूरी चीजें ही साथ ले जाने देती है। ऐसे में सवाल आता है कि शुभांशु अपने साथ मूंग और मेथी के बीज क्यों ले गए हैं? वे वहां किन-किन चीजों पर रिसर्च करेंगे।

शुभांशु सबसे पहले ‘मायोजेनेसिस’ पर अध्ययन करेंगे। ‘मायोजेनेसिस’ एक अंतरिक्ष प्रयोग है, जिसमें माइक्रोग्रैविटी का मांसपेशियों पर प्रभाव अध्ययन किया जाएगा। लंबे समय तक अंतरिक्ष में रहने से मांसपेशियां कमजोर होती हैं। यह शोध भारत के Institute of Stem Cell Science द्वारा मांसपेशी रोगों की समझ और इलाज विकसित करने में मदद करेगा, खासकर अंतरिक्ष यात्रियों और बुजुर्गों के लिए।

शुभांशु शुक्ला का दूसरा प्रयोग अंतरिक्ष में फसलों के बीजों पर माइक्रोग्रैविटी के प्रभाव से जुड़ा है। छह फसलों पर हो रहा यह शोध भविष्य में अंतरिक्ष में खेती की संभावनाएं तलाशेगा। इसे केरल कृषि विश्वविद्यालय ने प्रस्तावित किया है।

शुभांशु शुक्ला Axiom-4 मिशन के तहत माइक्रोग्रैविटी में मांसपेशियों, बीजों और टार्डीग्रेड्स पर शोध करेंगे। ये अध्ययन अंतरिक्ष में मांसपेशियों की कमजोरी, फसलों के जेनेटिक गुणों में बदलाव और सूक्ष्म जीवों के जीवन पर प्रभाव को समझने में मदद करेंगे, जो भविष्य के मिशनों के लिए उपयोगी होगा।

इसके बाद वे माइक्रोग्रैविटी में तीन प्रकार की एककोशिकीय माइक्रोएल्गी के विकास और व्यवहार का विश्लेषण पर अध्ययन करेंगे। ताकि यह जाना जा सके कि क्या वे भविष्य में अंतरिक्ष यात्रियों के पोषण और ऑक्सीजन रिसाइक्लिंग में सहायक हो सकती हैं।

अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर शुभांशु शुक्ला मूंग और मेथी के बीजों के अंकुरण पर माइक्रोग्रैविटी में शोध करेंगे। अध्ययन में बीजों के विकास, पोषण क्षमता, जेनेटिक बदलाव और माइक्रोबियल लोड पर असर देखा जाएगा। इनसे निकले बीजों को धरती पर आगे उगाया जाएगा।

शुभांशु शुक्ला का छठा प्रयोग स्पेस स्टेशन पर माइक्रोग्रैविटी में सायनोबैक्टीरिया की जैव रासायनिक प्रक्रियाओं पर प्रभाव का अध्ययन है, जो भविष्य में अंतरिक्ष मिशनों के लिए जीवन-सक्षम पर्यावरण बनाने में मदद कर सकता है। इसके अलावा वे सातवें प्रयोग के तौर पर अंतरिक्ष की परिस्थितियों में कंप्यूटर स्क्रीन का आंखों पर कैसा असर पड़ता है, आंखों के मूवमेंट, ध्यान लगाने की क्षमता पर अध्ययन करेंगे। यह सभी परीक्षण भारत के गगनयान मिशन के नजरिए से बेहद अहम हैं।

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