अन्य
कोन्दा भैरा के गोठ- व्यंग्यकार सुशील भोले…

–चुनाव आचार संहिता कब लगही तेने ल अब गुनत हौं जी भैरा.
-कइसे ए बछर के चुनई म तहूं खड़ा होवत हस का जी कोंदा?
-अरे नहीं संगी.. आचार संहिता लगही तब रेडियो, टीवी अउ पेपर-सेपर मन म फोकटइहा विकास के गाथा अउ रकम-रकम के बुता-काम करे के जेन सरकारी लबारी देखे-सुने अउ पढ़े बर मिलत हे ना.. तेन मन थिराही, तब जाके हमर आॅंखी-कान जुड़ाय असन लागही.
-कइसे गोठियाथस संगी.. त का सरकार ह करोड़ों रुपिया खरचा कर के अतेक बड़े-बड़े विज्ञापन बनवावत-चलावत हे तेन सबो ह लबारी आय?
-निरमामूल लबारी तो नहीं, फेर बुता कम अउ तमाशा जादा आय, तेकर सेती आॅंखी-कान झन्नाय असन लागथे.