विविध समाचार

चित्रकूट का चमत्कारी पर्वत! जहां दंडवत परिक्रमा से दूर होते हैं पाप, मिलती है मनचाही मुराद

धर्म, आस्था और तप की नगरी चित्रकूट को भगवान श्रीराम की तपोभूमि माना जाता है. यह वही पवित्र भूमि है जहां प्रभु श्रीराम ने अपने वनवास के 14 सालों में से करीब साढ़े ग्यारह साल का समय बिताया था. यहीं पर स्थित है एक ऐसा दिव्य पर्वत, कामदगिरी (Kamadgiri Parvat) जिसे श्रद्धालु केवल एक पहाड़ नहीं, बल्कि स्वयं भगवान राम का स्वरूप मानते हैं. कहते हैं कि इस पर्वत की परिक्रमा मात्र से ही पापों का नाश हो जाता है और हर मनोकामना भी पूर्ण होती है.
क्यों इतनी खास है कामदगिरी पर्वत की परिक्रमा?
कामदगिरी पर्वत की परिक्रमा लगभग 5 किलोमीटर की होती है, जिसे लाखों श्रद्धालु हर साल नंगे पांव करके जाते हैं. परिक्रमा का मार्ग धार्मिक स्थलों और मंदिरों से होकर गुजरता है. भक्तों की मान्यता है कि इस परिक्रमा से न सिर्फ मानसिक और आत्मिक शुद्धि मिलती है, बल्कि जिनकी इच्छाएं पूरी हो जाती हैं, वे यहां आकर दंडवत परिक्रमा करते हैं. दंडवत परिक्रमा का अर्थ है शरीर को जमीन पर सीधा लिटाकर, जितनी दूरी शरीर की लंबाई होती है, उतनी दूरी पर फिर से दंडवत करना. इस तरह पूरा चक्र पूरा करते हैं. यह परिक्रमा शरीर से अधिक श्रद्धा और धैर्य की परीक्षा होती है.

क्या है कामदगिरी का धार्मिक इतिहास?
पुजारी राकेश कुमार पांडे बताते हैं कि यह वही पर्वत है जहां भगवान राम ने ऋषियों और साधुओं के साथ कई सालों तक साधना की थी. जब उन्हें वनवास मिला तो वे चित्रकूट आए और यहीं कामदगिरी पर्वत पर वास किया. यहीं उन्होंने भरत से मिलकर ‘राज धर्म’ पर संवाद किया था और यहीं उन्हें कामतानाथ के रूप में पूजा जाने लगा.

जब प्रभु श्री राम ने दिया आशीर्वाद
मान्यता के अनुसार, एक बार जब श्रीराम चित्रकूट से प्रस्थान कर रहे थे, तो यहां के संत और ऋषि उनके चरणों में गिर पड़े और बोले, “प्रभु, अगर आप चले जाएंगे तो हमारा उद्धार कैसे होगा?” इस पर प्रभु श्रीराम ने उन्हें आशीर्वाद देते हुए कहा, “मैं सीता के साथ यहीं वास करूंगा. जो भी भक्त श्रद्धा से इस पर्वत की परिक्रमा करेगा, उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होंगी.” यही कारण है कि आज भी हजारों भक्त यहां परिक्रमा करते हैं.

कामदगिरी पर्वत की परिक्रमा सिर्फ धार्मिक रस्म नहीं, भक्ति और समर्पण की गहराई का प्रतीक है. भक्त यहां न सिर्फ सामान्य परिक्रमा करते हैं, बल्कि दंडवत परिक्रमा के जरिए अपनी श्रद्धा भी प्रकट करते हैं. ऐसी मान्यता है कि जो भी भक्त सच्चे मन से यह परिक्रमा करता है, उसकी हर अधूरी इच्छा पूरी हो जाती है.

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button