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75 साल बाद मक्का में फिर मिला परिवार; भावुक कर देगी कहानी

मक्का. भारत और पाकिस्तान के बंटवारे को 75 साल से ज्यादा गुजर गए हैं लेकिन कई दिलों में अब भी इसकी कसक बाकी रह गई है। पाकिस्तान में रहने वाली 105 साल की हजरा बीबी अपनी बहन और परिवार से बिछड़ गईं औऱ इतने साल तक मिलने की आशा पाले रहीं। सऊदी अरब के मक्का में बीते सप्ताह फिर से अपने परिवार से मिलीं तो भावुक हो गईं। हजरा बीबी की बहन तो पहले ही दुनिया छोड़कर जा चुकी हैं। हालांकि उनकी मुलाकात भांजी हानीफा से हुई जो कि अब 60 साल की हैं। उन्होंने बताया कि कई साल से वह अपने परिवार से मिलने की कोशिश कर रही थीं लेकिन कोई ना कोई अड़चन बीच में आ जाती थी।

बीते साल जून में जब एक यूट्यूबर को हजरा बीबी और उनके बिछड़े हुए परिवार के बारे में पता चला तो वह इन्हें मिलवाने की कोशिश में लग गया। और आखिरकार पवित्र शहर मक्का में दोनों की मुलाकात हुई। इससे पहले दोनों परिवार गुरुद्वारा करतारपुर साहिब में मिलना चाहते थे। दरअसल पाकिस्तान के करतारपुर साहिब और पंजाब के गुरुदासपुर में गुरुद्वारा डेरा बाबा नानक से कॉरिडोर निकाला गया है जो कि वीजा फ्री है। यहां मिलने की इजाजत भी उनको नहीं मिल पाई।

हनीफा पंजाब के कपूरथला की रहने वाली हैं। उन्होंने हाजरा बीबी से मिलने के बाद कई बार वीजा के लिए आवेदन किया लेकिन उन्हें वीजा ही नहीं मिल पाया। बीते साल जून में पहली बार हाजरा बीबी ने हनीफा से वीडियो कॉल पर बात की। कॉल के दौरान उन्होंने अपनी छोटी बहन के बारे में पूछा और पता चला कि वह कुछ समय पहले ही चल बसी हैं। इस खबर को सुनकर हाजरा बीबी बहुत दुखी हो गईं।

जब दोनों परिवार फिर से मिलने की उम्मीदें खत्म ही होने वाली थीं कि पाकिस्तान के यूट्यूबर नासिर ढिल्लन और अमेरिका में रहने वाले सिख पॉल सिंह गिल मदद को आगे आए। बीते गुरुवार को काबा के पास दोनों परिवार इकट्ठा हो गए। ढिल्लन ने कहा, हमने हाजरा बीबी का वीडियो यूट्यूब पर अपलोड किया था औऱ बताया था की उनका परिवार भारत में कहां पर रहता है। हाजरा 1947 में पाकिस्तान आ गई थीं वहीं मजीदा ने भारत में ही रहने का फैसला किया था।

इतने समय बाद अपने खून के रिश्ते को देखकर दोनों परिवारों के आंसू छलक आए। हाजरा बीबी और हनीफा मक्का में मिलने के बाद खूब रोए। वे फोन पर संपर्क में रहते थे लेकिन पहली बार मक्का में ही आमने-सामने मुलाकात हुई। हनीफा को करतारपुर कॉरिडोर के लिए अनुमति नहीं मिली थी। वहीं दो भाई सादिख खान और सिक्का खान पहले ही करतारपुर साहिब में मिल चुके थे। दोनों ही परिवार गरीब हैं इसलिए उन्हें और भी मुश्किल का सामना करना पड़ रहा था। पॉल सिंह गिल ने ही इन दोनों परिवारों को मिलाने के लिए पैसे का भी बंदोबस्त किया था।

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