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हाथ में किताबों की जगह कचरे की बोरी और ध्यान पढ़ाई की जगह कबाड़ की ढेर पर

कोरबा शैक्षणिक सत्र 2024-25 में आरटीई के तहत निजी स्कूलों के अलावा आत्मानदं विद्यालय में दाखिले के लिए प्रकिया चल रही है। इसका लाभ स्लम बस्ती के शाला त्यागी बच्चाें को नहीं मिल रहा। शहर में घुमंतू और कचरा उठाने वाले बच्चों की संख्या कम नहीं हो रही। कंधे में बोरा लटकाए व्यवसायिक प्रतिष्ठानों के आसपास कचरा तलाशते कम उम्र के बच्चों को अब भी देखा जा सकता है। आरटीई से घुमंतू बच्चों को जोड़ने के लिए शिक्षकों की टीम गठित पिछले तीन साल से नहीं की जा रही। ऐसे में अटल आवास और श्रमिक बस्तियों में रहने वाले अधिकांश बच्चे विद्यालय के अध्यापन से दूर होते जा रहे हैं। इन बच्चों का स्वास्थ्य विभाग में आकलन है ना ही शिक्षा विभाग में आंकड़े। मुफ्त की किताबें, मध्यान्ह भोजन सब कुछ होते हुए भी बच्चों के पीठ से कचरे का बोझ नहीं उतर रहा। कोरोना काल में श्रमिक क्षेत्रों में आनलाइन पढ़ाई का बच्चों को लाभ नहीं मिला। इस दौरान भले ही पढ़ाई ठप रही लेकिन कबाड़ का कारोबार खूब चला।

पढ़ाई की जगह कबाड़ की ढेर पर

ऐसे में जीवीकोपार्जन के लिए कचरा उठाने वाले बच्चों की संख्या बढ़ती गई। अज्ञानतावश अभिभावक भी बच्चों को कचरे की कमाई में धकेलने में पीछे नहीं हैं। विद्यालयों में दाखिल रजिस्टर में खानापूर्ति के लिए इन छात्रों का नाम दर्ज कर दिया जाता है, किंतु इनके शिक्षा स्तर के बारे किसी भी तरह की पूछपरख नहीं की जाती। सर्वशिक्षा अभियान नियम के अनुसार शाला त्यागी व शाला अप्रवेशी विद्यार्थियों को विद्यालय में दाखिला देना आवश्यक है। शहर के श्रमिक बस्तियाें मे पढ़ाई हो रही है या नहीं इसे लेकर शिक्षा विभाग अधिकारी गंभीर नहीं हैं। इंडस्ट्रियल क्षेत्र के रिस्दी व 15 नंबर ब्लाक सहित शहर के अन्य अटल आवास में रहने वाले बच्चे बाल श्रमिक के तौर पर विभिन्न कई संस्थानों में काम करते हैं। बच्चों का स्कूल में नाम दाखिल है या नहीं इस पर शिक्षा विभाग की ओर से अब तक कोई सुध नहीं ली गई है।

शिक्षा सेतु के लिए नहीं प्रशिक्षित शिक्षक

प्राथमिक अथवा मिडिल की पढ़ाई छोड़ चुके बच्चाें को शिक्षा की मुख्य धारा में जोड़ने के लिए पहले सेतु-पढाई की व्यवस्था की गई थी। इसके लिए शिक्षकों को प्रशिक्षित भी किया जाता था। कोरोेना काल में यह बंद हुई जो अब तक शुरू नहीं हुई। बताना होगा कि बच्चों के अभिभावकों से ज्यातर पुलिस अथवा चाइल्डलाइन का ही संवाद होता हैं। ज्यादातर मामले में काऊंसिलिंग के बाद यह बात सामने आती है कि कचरा उठाने का काम अभिभावक ही करवा रहे हैं। इस वजह से अभिभावकों के खिलाफ संवैधानिक ढंग से कार्रवाई करना मुश्किल होता है।

अटैचमेंट से नहीं उबरा शिक्षा विभाग

शिक्षा संचालनालय ने अटैचमेंट समाप्त करने का स्पष्ट आदेश जारी कर दिया है। इसके बाद भी शिक्षा विभाग से लेकर खंड कार्यालय व आदिवासी विकास विभाग अटैच शिक्षकों के दम पर चल रहा है। जिन स्कूलों से अटैच कर दिए गए हैं वहां पढ़ाई के नाम पर मजह खानापूर्ति हो रही है। कक्षा पहली से पांचवीं तक दो शिक्षक व एक प्रधान पाठक का सेटअप है, वह भी अटैचमेंट की भेंट चढ़ गई है। शहर के अंधरी कछार, रामपुर, एनसीडीसी, सीतामढ़ी आदि स्कूल अतिरिक्त शिक्षकों से भरे पड़े हैं। इस पर विभाग की ओर से नियम तय नहीं किए जाने के कारण गांव के स्कूल सीमित शिक्षकों के भरोेसे चल रहे हैं।

आपराधिक घटनाओं में में बढ़ रही संलिप्तता

अशिक्षा से जूझ रहे श्रमिक बस्ती व अटल आवास में रहने वाले वे बच्चे शामिल हैं जिनके अभिभावक दीगर प्रांत से यहां जीवकोपार्जन के लिए आए हैं। उनका बच्चाें की शिक्षा पर ध्यान नहीं होने से वे छोटी-बड़ी चोरियां अथवा आपराधिक कार्यों में संलिप्त रहते हैं। इसके अलावा कबाड़ में इनकी खास नजर होती है। अधिकांश घुमंतू बच्चे बोनपिुक्स, कोरेक्स व नशीले दवाओं के आदी हो चुके हैं, उनके लिए नशा के लिए पैसे जुटाना पहली प्राथमिकता है। यही वजह है कि वे पढ़ाई छोड़ पैसे के जुगाड़ में नशीले सामानों की पूर्ति के लिए लगे रहते हैं।

वर्जन

घुमंतू व कचरा इकट्ठा करने वाले बच्चों को शिक्षा की मुख्यधारा में जोड़ने के लिए शिक्षकों की टीम गठित की गई है। जिनके माध्यम से बच्चाें को शिक्षा के अधिकार का लाभ देने के लिए अभिभावकाें को समझाइस दी जा रही है।

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