सेना-पुलिस भर्ती की तैयारी कर रहे घोर नक्सल क्षेत्र के युवा, 6 माह में 32 युवाओं का हुआ चयन

गरियाबंद. नक्सलगढ़ कहे जाने वाले गरियाबंद जिले में अब डर छट गया है। पिछले 6 माह में 100 से ज्यादा युवक-युवतियों ने यूनिफॉर्म सर्विस के लिए अपलाई किया था, जिसमें 32 लोग चयनित हुए हैं। इनमें से 10 से ज्यादा युवक-युवती घोर नक्सली क्षेत्र मैनपुर इलाके से हैं.
आदिवासी परिवार से भी युवक-युवती यूनिफॉर्म सर्विस में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने लगे हैं। भर्ती का यह आंकड़ा अब तक सर्वाधिक माना गया है। एसपी निखिल राखेचा ने आंकड़े की पुष्टि करते हुए बताया कि पिछले कुछ माह में सूबेदार/उपनिरीक्षक/प्लाटून कमांडर में 15, आरक्षक (जीडी) में 3, सीआरपीएफ में 3, सीआईएसएफ में 2, आईटीबीपी में 2, अग्निवीर के 5 और नगर सेना में 2 की भर्ती हुई है, सभी ट्रेनिंग ले रहे हैं।
जाड़ापदर गांव मैनपुर मुख्यालय से महज 5 किमी दूरी पर बसा है। यहां से 15 किमी दूरी पर ही भालूडीगी पहाड़ी इलाके में जनवरी में 16 नक्सली मारे गए थे। इसी गांव के इर्द गिर्द में ही नक्सलियों की चहल कदमी होती थी, लेकिन गांव के गौर सिंह नागेश के परिवार ने साहस का परिचय दिया। 2021 में बेटी लिना नागेश ने भर्ती परीक्षा में भाग लिया और सब इंस्पेक्टर बनी। अक्टूबर 2024 में जब रिजल्ट आया तो वह 24 साल की थी। फरवरी 2025 में वह रायपुर के ट्रेनिंग सेंटर चली गई। घर में बड़ा भाई मिथलेश आरक्षक है, भाभी जमुना नागेश नगर सैनिक में है। लिना के चलते अब गांव में 20 से ज्यादा लोग पुलिस सेना में जाने की तैयारी कर रहे हैं। इस गांव में दो अग्निवीर भी है।
बड़े भाई विक्की नायक और अपने अन्य मित्र के साथ ढलते शाम को गांव के बाहर दौड़ लगाने निकले अग्निवीर प्रमोद नायक बताते हैं कि पहले नक्सली गतिविधियों के कारण शाम को घर से बाहर निकलने में डर लगता था, अब बेझिझक सभी युवा तैयारी कर रहे हैं। लिना की मां उपासी बाई सरपंच बन गई हैं। उन्होंने कहा कि इन सबके लिए जिला पुलिस और जंगल में आमने-सामने लड़ने वाले जवानों का आभार, जिनके शौर्य पराक्रम के चलते हम अब निर्भीक होकर अपनी इच्छा के अनुरूप काम कर रहे हैं। नहानबीरी निवासी आदिवासी परिवार के मुखिया चंदन नागेश की बड़ी बेटी भवानी भी सब इंस्पेक्टर बन गई है। चंदन की पत्नी महेंद्री बाई बताते हैं कि तीन बेटी में से बड़ी बेटी का वर्दी पहनने का सपना था। रायपुर में पीजी करते हुए उसने भर्ती परीक्षा में भाग लिया। तीन साल तक रायपुर का खर्च निकालने दो छोटे बेटियों और एक बेटे की जरूरत में कटौती किया। तीन एकड़ जमीन है पर आमदनी कम थी इसलिए पूरा परिवार मजदूरी भी करते हैं। निजी कर्ज अब भी है। पिछला किस्सा सुनाते हुए मां की आंखें भर आई। मां ने कहा, बड़ी बेटी की चिंता दूरी हुई। अब उसकी मदद से उससे छोटी दो बेटियों के भविष्य को संवारना है। नक्सली भय के सवाल पर उन्होंने कहा कि भय तो था पर उसे भगाकर हिम्मत दिखाना पड़ा।