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कोन्दा भैरा के गोठ – सुशील भोले

-‘हमन बनाए हन, त हमीं मन सजाबो’ ए नारा ह सुने म कतका सुघ्घर लागथे जी भैरा.
-हाँ लागथे तो जी कोंदा.. भई जे मन अपन घर-कुरिया ल बनाथें, उहिच मन तो वोला सजाथे-सम्हराथे घलो न.
-फेर राजनीति क्षेत्र के बनई अउ संवरई ह थोरिक आने बानी के जनावत हे संगी.
-कइसे भला?
-हमर इहाँ के पुरखौती मेला-मड़ई के संस्कृति म फेर नकली कुंभ झपइया हे तइसे जनावत हे.
-अइसे का..!
-हहो.. इहाँ के राजिम पुन्नी मेला ल कुंभ के नॉव दे के पारंपरिक स्वरूप ल पहिली बिगाड़े रिहिन हें, तेला तो जानते हावस.
-हव जी.. पाछू वाले सरकार ह वोला जस के तस पुन्नी मेला के स्वरूप म लाने रिहिसे.. इही हमर परंपरा घलो आय.
-हव.. उहीच ल फेर कुंभ के नॉव म जतर-कतर करबो काहत हें.. अभी के नवा सरकार के संस्कृति मंत्री के गोठबात ले अइसने आरो मिलत हे.
-फेर ए ह बने बात नोहय संगी.. मेला ल बड़का स्वरूप दे के तो स्वागत करथन, फेर एकर नॉव अउ स्वरूप के बदलई ह इहाँ के परंपरा के हत्या बरोबर हे.
-सही आय जी.. कम से कम आदिवासी मुखिया के कार्यकाल म तो परंपरा के बिगाड़ के भरोसा नइ रिहिसे.

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