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बलात्कार की पीड़िताओं का ‘टू फिंगर टेस्ट’ करने वाले डॉक्टरों को मद्रास उच्च न्यायालय ने कड़ी चेतावनी

नई दिल्ली. कोर्ट का कहना है कि ऐसा करने वाले डॉक्टर भी गलत काम करने के दोषी होंगी। अदालत ने एक मामले में सुनवाई के दौरान इस तरह की जांच पर कड़ी आपत्ति जताई है। खास बात है कि भारत का शीर्ष न्यायालय पहले ही इस टेस्ट पर प्रतिबंध लगा चुका है।

कोर्ट ने कहा, ‘हमें दुख है कि टू फिंगर टेस्ट इस मामले में किया गया है। जबकि, माननीय सुप्रीम कोर्ट ने और इस कोर्ट ने भी कई मामलों में बार-बार कहा है कि यह टेस्ट यह पता करने के लिए स्वीकार्य नहीं है कि पीड़िता के साथ सेक्सुअल इंटरकोर्स हुआ है या नहीं।’ सुनवाई के दौरान अदालत ने डॉक्टरों को भी कड़े शब्दों में हिदायत दे दी। अक्टूबर 2022 को ही सुप्रीम कोर्ट ने रेप के मामले में टू फिंगर टेस्ट पर रोक लगा दी थी और ऐसा करने वालों को चेतावनी भी दी थी। शीर्ष न्यायालय ने पाया था कि इस तरह की जांच का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है और इससे पीड़ित महिला को फिर बुरे दौर से गुजरना पड़ता है। कोर्ट ने स्वास्थ्य मंत्रालय को भी सुनिश्चित करने के निर्देश दिए थे कि यौन हिंसा और बलात्कार की पीड़िताओं का टू फिंगर टेस्ट नहीं किया जाए।

मद्रास हाईकोर्ट ने अप्रैल 2022 में राज्य सरकार को टू फिंगर टेस्ट पर प्रतिबंध लगाने के निर्देश दिए थे। उच्च न्यायालय का कहना था कि इस तरह की जांच रेप पीड़िताओं की निजता, शारीरिक और मानसिक अखंडता और गरिमा के अधिकार का उल्लंघन करती है।

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