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बिलासपुर की चमक बढ़ाने सांसद प्रत्याशी बनाएं अच्छी कार्ययोजना

बिलासपुर। लोकसभा चुनाव भले ही केंद्र सरकार चुनने के लिए होते हैं, फिर भी स्थानीय स्तर पर सांसद प्रत्याशी को एक अच्छी कार्ययोजना बनानी चाहिए। बिलासपुर के युवाओं और मतदाताओं से मिलकर उनके सुझाव और प्रश्नों को शामिल करना चाहिए। राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भले ही भारत की धमक अच्छी है। स्थानीय स्तर पर भी बल देने की आवश्यकता है।

लोकसभा चुनाव को लेकर शहर के युवा मतदाताओं ने अपने-अपने विशिष्ट विचार प्रस्तुत किए हैं। उनका कहना है कि जनता को भी स्थानीय प्रत्याशी पर इस बात का दबाव बनाना चाहिए कि यह राष्ट्रीय स्तर की उपलब्धियों के सहारे चुनाव न जीते, बल्कि अपनी स्वयं की समझ से अपने क्षेत्र के विकास की योजना भी बनाएं। आगामी चुनाव में बिलासपुर सीट से जो भी सांसद बने, उन्हें यहां रोजगार की स्थितियों को बेहतर करने की दिशा में काम करना होगा। सरकार को इस दिशा में कोई ठोस कदम उठाने चाहिए।

बिलासपुर को एजुकेशन हब कहा जाता है। यहां प्रदेशभर से युवा पढ़ने आते हैं इसके अलावा दूसरे प्रदेशों से भी स्टूडेंट आते हैं। हर साल बाहर से आने वाले युवाओं की संख्या बढ़ रही है। ऐसे में उनके परिवार पर काफी अधिक बोझ बढ़ जाता है। कई बार इसका असर विद्यार्थियों पर भी देखने को मिलता है। नई सरकार को चाहिए कि वह थ्योरी के साथ प्रैक्टिकल पर भी ध्यान दें, ताकि बच्चे शहर में अपनी शिक्षा पूरी करने के साथ कुछ काम कर सकें। इसके अलावा कालेज के समय से ही बच्चों को निशुल्क इंटर्नशिप मिलनी चाहिए, जिससे की कम से कम वह अपना खर्च खुद निकाल सकें।

हेमूनगर निवासी शिवम मिश्रा का कहना है कि राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की धमक काफी बढ़ी है। दुनियाभर में भारत की चमक बढ़ी है। इसके साथ-साथ चुनावों में स्थानीय मुद्दों पर भी बात होनी चाहिए। जिस भी पार्टी का प्रत्याशी लोकसभा चुनाव जीतकर सांसद बने, उसे स्थानीय स्तर पर विकास के कार्य करने होंगे।

युवा योग शिक्षक मोनिका पाठक का कहना है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति को आए कई दिन हो गए हैं, परंतु अब तक किताबी शिक्षा पर ही बात हो रही है। रोजगार के लिए अब कौशल शिक्षा पर गौर करना चाहिए। इससे रोजगार के लिए अतिरिक्त प्रयास नहीं करने पड़ेंगे। नई सरकार को शिक्षा को ड्रीम प्रोजेक्ट के रूप में रखना होगा।

एमए छात्र फिनेश साहू का कहना है कि चुनावों की दौरान प्रत्याशी जिस तरह जनता के बीच सक्रिय रहते है. ऐसी ही सक्रियता चुनाव बीत जाने के बाद भी रखनी होगी। मगर हकीकत में बाद में स्थिति उलटी हो जाते है। चुनाव में अगर कोई काम हो तो वे चुटकियों में पूरे हो जाते है। वहीं चुनाव के बाद कितनी भी बड़ी समस्या हो, किंतु नेताजी ढूंढे नहीं मिलते।

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