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शिक्षा की आजादी पर संकट या राजनीति की नई चाल? सवालों के घेरे में ट्रंप का एजुकेशन मॉडल

वॉशिंगटन डीसी : दुनिया की प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी हार्वर्ड अब अमेरिकी राजनीति की सबसे बड़ी लड़ाइयों में से एक का केंद्र बन चुकी है। द न्यूयॉर्क टाइम्स के रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के प्रशासन के खिलाफ हार्वर्ड यूनिवर्सिटी ने सोमवार को मासाचुसेट्स की संघीय अदालत में मुकदमा दर्ज कर दिया है। इसकी वजह है, ट्रंप प्रशासन की ओर से बार-बार 2.2 अरब डॉलर की फंडिंग रोकने की धमकी है।

हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के अध्यक्ष एलन एम. गार्बर ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए ट्रंप प्रशासन पर अभूतपूर्व और अनुचित नियंत्रण थोपने की कोशिश का आरोप लगाया। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि सरकार इस राह पर चलती रही, तो इसके गंभीर और दीर्घकालिक परिणाम देखने को मिल सकते हैं।
विवाद की जड़

यह पूरा विवाद तब भड़का जब ट्रंप प्रशासन ने अक्टूबर 2023 से अब तक के यहूदी-विरोधी और इस्लामोफोबिक घटनाओं की रिपोर्ट्स की मांग की। सरकार का आरोप है कि हार्वर्ड ने कैंपस में यहूदी-विरोधी भाषा को अनदेखा किया है और इस पर ठोस कार्रवाई नहीं की।

प्रेसिडेंट गार्बर, जो खुद यहूदी हैं, ने अपने बयान में कहा कि एक यहूदी और एक अमेरिकी के तौर पर मैं समझता हूं कि यहूदी-विरोधी घटनाएं वाकई चिंता का विषय हैं। लेकिन इसका समाधान शिक्षा को नियंत्रित करने से नहीं, बल्कि कानूनी ढंग से संवाद करने से होगा।
क्या दांव पर सिर्फ फंडिंग है?

हार्वर्ड के मुकदमे के अनुसार, यह सिर्फ फंडिंग रोकने की धमकी नहीं है। यह एक बड़े पैमाने पर शैक्षणिक स्वतंत्रता को हथियाने की कोशिश है। विश्वविद्यालय ने दावा किया कि यह कदम सरकार की ओर से हार्वर्ड जैसे संस्थानों के शैक्षणिक निर्णयों को प्रभावित करने की साज़िश का हिस्सा है।
ट्रंप प्रशासन ने विश्वविद्यालय से कुछ कड़े और विवादित कदम उठाने की मांग की थी, जिनमें शामिल हैं:-

DEI (Diversity, Equity and Inclusion) प्रोग्राम्स को समाप्त करना
कैंपस प्रोटेस्ट में मास्क पर बैन लगाना
मेरिट-आधारित हायरिंग और एडमिशन सिस्टम लागू करना
शैक्षणिक स्टाफ की शक्ति सीमित करना, जिन्हें ट्रंप प्रशासन अधिनायकवादी वामपंथी कह रहा है

ट्रंप का तीखा हमला

ट्रंप ने हार्वर्ड पर हमला बोलते हुए इसे वोक और रेडिकल लेफ्ट की नर्सरी करार दिया और कहा कि यह यूनिवर्सिटी अब ‘दुनिया के महान शिक्षण संस्थानों’ की सूची में शामिल होने लायक नहीं रही।

आपको जानकारी के लिए बताते चलें कि यह मुकदमा न केवल हार्वर्ड के लिए, बल्कि अमेरिका की शैक्षणिक स्वतंत्रता, राजनीतिक हस्तक्षेप और विश्वविद्यालयों की स्वायत्तता के लिए भी एक निर्णायक मोड़ बन सकता है। सवाल यह है कि क्या शिक्षा अब भी स्वतंत्र है या वह भी राजनीति की गिरफ्त में आ चुकी है?

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