फूड, फर्टिलाइजर और फ्यूल सब्सिडी बिल 5 साल के निचले स्तर पर

एक फरवरी को पेश किए गए अंतरिम बजट के मुताबिक भोजन (Food), उर्वरक (Fertilizer) और ईंधन (Fuel) पर केंद्र का सब्सिडी बिल 2024-25 में पांच साल के निचले स्तर 3,81,175 करोड़ रुपये तक गिरने की उम्मीद है। दरअसल प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत 80 करोड़ से अधिक लाभार्थियों को मुफ्त अनाज दिया जा रहा है। सरकार ने सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) के तहत हर महीने अतिरिक्त 5 किलोग्राम मुफ्त अनाज देना बंद कर दिया है। यह अतिरिक्त चावल या गेहूं राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत नियमित 5 किलोग्राम/व्यक्ति/माह पीडीएस कोटा से अधिक अप्रैल 2020 से दिसंबर 2022 तक पोस्ट-कोविड अवधि के दौरान दिया गया था।
39.18 का चावल और 27.03 रुपये किलो का गेहूं मुफ्त दे रही सरकार: कोटे की दुकानों से मिलने वाले राशन को सरकार काफी पैसे खर्च करके खरीदती है और जबकि यही राशन पीडीएस लाभार्थियों को पूरी तरह से मुफ्त देती है। एफसीआई की आर्थिक लागत वर्तमान में चावल के लिए 39.18 रुपये प्रति किलोग्राम और गेहूं के लिए 27.03 रुपये प्रति किलोग्राम (2023-24 के लिए बजट अनुमान) है।
सरकारी खरीद के साथ गोदामों में घट रहा स्टॉक: इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुाबिक पीडीएस और अन्य योजनाओं के माध्यम से 2023-24 में अनाज का उठान 64-65 मिलियन टन तक गिर गया। 2020-21 में 92.9 मिलियन टन था। 2021-22 में 105.6 मिलियन टन और 2022-23 में 92.7 मिलियन टन रहा। सरकार की खरीद के साथ-साथ गोदामों में स्टॉक भी घट रहा है। ऐसे में 2024-25 के लिए खाद्य सब्सिडी 2,05,250 करोड़ रुपये होने का अनुमान लगाया जा रहा है।
जब ऑल टाइम हाई पर पहुंच गई सब्सिडी: 2020-21 में सब्सिडी 5,41,330 रुपये के ऑल टाइम हाई पर पहुंच गई थी। तब भारतीय खाद्य निगम (FCI) द्वारा एनएसएसएफ से लिए गए करीब 3,39,236 करोड़ रुपये के लोन को चुकाने के लिए एकमुश्त प्रावधान किया गया था। 2020-21 से पहले केंद्र एफसीआई की अनाज की लागत (खरीद, वितरण और भंडारण में जो खर्च होता है) और उसके एवरेज इश्यू प्राइस के बीच अंतर से उत्पन्न होने वाली सब्सिडी को पूरी तरह से वित्त पोषित नहीं कर रहा था। इस अंतर को पाटने के लिए उसे एनएसएसएफ से 7.4 से 8.8 प्रतिशत वार्षिक ब्याज की दर पर उधार लेना पड़ा।
फर्टिलाइजर की सब्सिडी का कम हुआ बोझ
केंद्र सरकार के कंधों से सब्सिडी का बोझ कुछ हल्का करने में दूसरा सबसे बड़ा कारक फर्टिलाइजर्स हैं। फरवरी 2022 में यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के बाद यह सब्सिडी बिल 2022-23 में रिकॉर्ड 2,51,339 करोड़ रुपये तक पहुंच गया। क्योंकि, उर्वरकों और कच्चे माल की अंतरराष्ट्रीय कीमतें आसमान पर थीं। अब कीमतें कम हो गई हैं।
दिसंबर 2023 में वैश्विक यूरिया की कीमतें औसतन 402 डॉलर प्रति टन थीं। जबकि, दिसंबर 2022 में यूरिया की कीमतें औसत 576 डॉलर और दिसंबर 2021 में 990 डॉलर पर थीं। इसी तरह डाइ-अमोनियम फॉस्फेट, म्यूरेट ऑफ, फॉस्फोरिक एसिड, अमोनिया और सल्फर की कीमतें 2021 और 22 के मुकाबले दिसंबर 2023 में कम हो गईं। इससे उर्वरक सब्सिडी 2023-24 में गिरकर 188,894 करोड़ रुपये हो गई और आगामी वित्तीय वर्ष के लिए बजट में यह और भी कम होकर 1,64,000 करोड़ रुपये होने का अनुमान है।
फ्यूल ने भी दिया सहारा: 3F के तीसरे किरदार फ्यूल की बात करें तो यहां सब्सिडी बिल 2012-13 में 96,880 करोड़ रुपये और 2013-14 में 85,378 करोड़ रुपये तक पहुंच गया। बाद में दुनिया में कच्चे तेल की कीमतें कम हुईं तो इसके कारण पेट्रोलियम सब्सिडी में गिरावट आई और मोदी सरकार ने इसे केवल एलपीजी सिलेंडर की बिक्री और गरीब व कमजोर आय वर्ग वाले परिवारों को कनेक्शन देने तक सीमित कर दिया।