पार्क की जमीन के व्यवसायीकरण के विरोध में धरने पर बैठे महापौर

रायपुर। नगर निगम में सत्तापक्ष और विपक्ष के बीच सियासी गर्माहट शुरू हो गई है। बुधवार को भाजपा पार्षदों ने महापौर एजाज ढेबर के खिलाफ मोर्चा खोला और निगम मुख्यालय में जमकर प्रदर्शन किया तो वहीं गुरुवार को महापौर ढेबर और उनके एमआइसी सदस्यों ने उद्यान की जमीन का व्यवसायीकरण के विरोध में भाजपा शासन के खिलाफ प्रदर्शन पर बैठ गए।
जानकारी के मुताबिक, राष्ट्र कवि डा. मैथिलीशरण गुप्त के नाम से बने तेलीबांधा उद्यान को उखाड़ा जा रहा है और व्यवसायीकरण के उपयोग में लाने की तैयारी की जा रही है। इसे लेकर श्रीगहोई वैश्य समाज के लोग विरोध कर रहे हैं। उनके साथ वहां के स्थानीय लोग भी प्रदर्शन में शामिल हुए। इसकी जानकारी मिलने पर महापौर एजाज ढेबर और उनके एमआइसी मेंबर भी मौके पर पहुंचे।
महापौर ने कहा कि मुझे इस संबंध में कोई जानकारी नहीं है। निगम इस गार्डन का कैसे व्यवसायीकरण कर रहा है। मैं इसे व्यवसायिक उपयोग के लिए डेव्हलप नहीं करने दूंगा। इसे लेकर नागरिकों ने भी अपनी प्रतिक्रिया दी है। लोगों का कहना है कि जब महापौर को ही मामले की जानकारी नहीं है तो निगम द्वारा कार्य के लिए अनुमति कैसे दी गई। उससे भी बड़ी बात यह रही कि महापौर खुद धरने पर बैठ गए।
इसके बाद सवाल उठा कि महापौर के कार्यकाल में ही तो गार्डन को निजी हाथों में सौंपा गया है। इसे लेकर एमआइसी सदस्यों ने कहा कि हमने अनुमति नहीं दी, शासन का ही प्रस्ताव था, हालांकि कुछ स्थानों के लिए था। जानकारी के मुताबिक यह उद्यान आरडीए की संपत्ति है।
इसे मेंटेन करने आरडीए ने निगम को और निगम ने गुप्त समाज को दिया हुआ है। यहां समाज कवि की प्रतिमा लगातार हर वर्ष सभाएं आयोजित करता है। बीते दो दिनों से यहां कुछ मशीनें लगाकर निर्माण कार्य शुरू कर किया जा रहा था। इस दौरान कुछ पेड़ भी काटे गए। इसके बाद वैश्य समाज के लोग विरोध में उतर आए।
नगर निगम में इन दिनों डस्टबिन को लेकर राजनीति गर्म है। डस्टबिन वितरण को लेकर लोग महापौर एजाज ढेबर को घेरना शुरू कर दिए हैं। इंटरनेट मीडिया प्लेटफार्म पर लिखा जा रहा है कि महापौर ने एक तरफ सफाई न होने की शिकायत पर कहा कि यह समस्या ऐसे ही बनी रहेगी, वहीं दूसरी ओर जनता की गाढ़ी कमाई के टैक्स से खरीदे गए डस्टबिन गोडाउन में सड़ रहे हैं।
वहीं, इस मामले को लेकर जब भाजपा पार्षदों ने सोमवार को महापौर को घेरा तो महापौर का कहना था कि मुझे इस संबंध में कोई जानकारी ही नहीं है। बड़ी बात तो यह है कि इस कार्य का भुगतान भी निगम ने संबंधित एजेंसी को किया है। इसके बाद 50 लाख की लागत वाले 42 हजार डस्टबिन निगम के गोडाउन में पड़े हैं।




