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‘परिजनों की इच्छा के अनुसार हो महिला की अंत्येष्टि’, लोगों के विरोध के बाद हाई कोर्ट का फैसला

बिलासपुर, छत्तीसगढ़. छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने मंगलवार को बस्तर के पुलिस अधीक्षक को आदेश दिया कि वह ईसाई धर्म अपना चुके एक परिवार की मृत महिला की अंत्येष्टि उसके परिजनों की इच्छा के अनुसार करने के लिए उन्हें आवश्यक सुरक्षा मुहैया कराएं। यह परिवार महिला को अपनी निजी जमीन पर दफनाना चाहता है, जिसका विरोध स्थानीय ग्रामीण कर रहे हैं। ग्रामीणों को कहना है कि इससे गांव में अनिष्ट होता है।

जस्टिस पार्थ प्रतिम साहू की सिंगल बेंच ने याचिकाकर्ता के पक्ष में फैसला देते हुए मेडिकल कॉलेज जगदलपुर के प्रबंधन से कहा है कि वह तत्काल शव को उसके बेटे को सुपुर्द करे। अदालत ने बस्तर के पुलिस अधीक्षक से कहा है कि वह याचिकाकर्ता को अपनी मां की अंत्येष्टि निजी भूमि पर करने के लिए पर्याप्त सुरक्षा दे।

दरअसल बस्तर जिले के एर्राकोट ग्राम के रामलाल कश्यप ने अपने अधिवक्ता के माध्यम से याचिका दायर कर बताया कि उनकी मां की 28 जून को स्वाभाविक मृत्यु हो गई। इसके बाद वह अपनी जमीन पर मां को दफनाना चाहता था लेकिन परपा थाने की पुलिस ने उसे ऐसा करने से रोक दिया और कहा कि वह शव को 15 किलोमीटर दूर कोरकापाल ग्राम में ले जाकर दफन करे, जहां पर एक अलग कब्रिस्तान बनाया गया है। याचिकाकर्ता ऐसा नहीं करना चाहता।

वह मां के शव को अपनी जमीन पर दफनाना चाहता है। पुलिस के रोक देने के कारण इस समय शव को मेडिकल कॉलेज जगदलपुर में रखा गया है।

रामलाल के वकील ने कहा कि याचिकाकर्ता को अपनी मां का अंतिम संस्कार सम्मानजनक तरीके से अपनी इच्छा के अनुसार करने का संवैधानिक अधिकार है। उन्होंने अप्रैल में आए हाई कोर्ट के ही एक फैसले का हवाला दिया जिसमें छिंदबहार के मृत व्यक्ति के संबंध में इसी तरह का एक आदेश दिया गया था। तब भी कोर्ट ने याचिकाकर्ता के पक्ष में फैसला दिया था।

याचिकाकर्ता के वकील की ओर से सुप्रीम कोर्ट द्वारा मोहम्मद लतीफ विरुद्ध जम्मू-कश्मीर केस में दिए गए एक आदेश का हवाला देते हुए कहा गया कि शव को सम्मानजनक तरीके और परिजनों की इच्छा के अनुसार दफनाने से रोकना संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है।

सरकार की ओर से उपस्थित उप महाधिवक्ता ने कहा कि उक्त ग्राम आदिवासी बाहुल्य है जिनकी मान्यता है कि धर्म परिवर्तित कर चुके व्यक्ति का अंतिम संस्कार गांव में करने से, चाहे वह उसी की निजी जमीन पर क्यों ना हो, गांव में अनिष्ट होता है। शव को गांव में दफनाने की अनुमति देने से विवाद और कानून व्यवस्था संबंधी समस्या पैदा हो सकती है।

याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने इस पर आपत्ति दर्ज की और कहा कि संविधान के प्रावधान के स्थान पर रूढ़िवादी मान्यता को ऊपर नहीं रखा जा सकता। सुनवाई के बाद कोर्ट ने याचिकाकर्ता के हक में फैसला दिया।

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