दिल्ली चुनाव और 8वें वेतन आयोग की घोषणा के बीच कोई कनेक्शन है?

बीते साल 2024 के दिसंबर में चल रहे संसद के शीतकालीन सत्र में केंद्र सरकार से सवाल पूछा गया था कि क्या बजट से पहले आठवें वेतन आयोग की घोषणा हो सकती है? इसे लेकर सरकार ने लिखित में जवाब दिया था कि “नहीं”। पर ध्यान देने वाली बात यह है कि इस जवाब के एक महीने बाद केंद्र सरकार ने आठवें वेतन आयोग गठन करने की घोषणा कर दी है। यह फैसला बीते गुरुवार 16 जनवरी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट की बैठक में लिया गया है। समाचार एजेंसियों की माने तो, आठवें वेतन आयोग के दायरे में करीब 50 लाख केंद्रीय कर्मचारी और लगभग 65 लाख पेंशनधारक आएंगे। इसे लेकर केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव का कहना है कि आयोग के चेयरमैन और दो सदस्य जल्द ही नियुक्त किए जाएंगे।
दरअसल, वेतन आयोग एक ऐसी व्यवस्था है जो केंद्र सरकार के लाखों कर्मचारियों के वेतन, भत्ते और लाभों को तय करने में अहम भूमिका निभाती है। यह आयोग एक अंतराल पर मौजूदा आर्थिक परिस्थितियों का आकलन करने के बाद सरकारी कर्मचारियों के लिए सैलरी में उचित संशोधन की सिफारिश करता है। ध्यान देने वाली बात यह है कि सरकार के लिए वेतन आयोग की सिफारिशों को मानना अनिवार्य नहीं है। सरकार चाहे तो आयोग की सिफारिशों को नहीं मान सकती है।
आपको जानकारी के लिए बता दें कि वेतन आयोग वित्त मंत्रालय के अंतर्गत काम करता है। आमतौर पर इसका गठन हर दस साल में किया जाता है। साल 1946 में पहला वेतन आयोग बनाया गया था। तब से लेकर अब तक सात वेतन आयोग बनाए जा चुके हैं। सातवें वेतन आयोग के तहत कर्मचारी यूनियनों ने कर्मचारियों के वेतन संशोधन के लिए 3.68 का फिटमेंट फैक्टर मांगा था, लेकिन सरकार ने फिटमेंट फैक्टर 2.57 निर्धारित किया था।
फिटमेंट फैक्टर एक कैल्कुलेशन है, जिसका इस्तेमाल सरकारी कर्मचारियों और रिटायर्ड कर्मचारियों के वेतन और पेंशन को बढ़ाने के लिए होता है। ध्यान देने वाली बात यह है कि इसमें भत्तों को नहीं शामिल किया जाता है। सातवें वेतन आयोग की सिफारिशें लागू होने के बाद केंद्रीय कर्मचारियों का न्यूनतम मूल वेतन सात हजार रुपये प्रति महीने से बढ़कर 18 हजार रुपये प्रति महीना किया गया था। वहीं न्यूनतम पेंशन को 3500 से बढ़ाकर 9500 रुपये किया गया। अधिकतम सैलरी 2.5 लाख रुपये और अधिकतम पेंशन 1.25 लाख तय की गई थी। गौरतलब हो कि सातवें वेतन आयोग की सिफारिशें मंजूर होने के बाद वित्त वर्ष 2016 से 17 के लिए सरकार के खर्चे में एक लाख करोड़ रुपये की बढ़ोतरी देखने को मिली थी।
साल 2011 के आंकड़ों को देखे तो देश भर में केंद्र सरकार के कर्मचारियों की संख्या लगभग 31 लाख थी। 31 लाख में 2 लाख से ज्यादा कर्मचारी ऐसे थे, जो केवल दिल्ली में रहते थे। मतलब 7 प्रतिशत सरकारी कर्मचारी दिल्ली में रहते थे। यह डाटा 14 साल पुराना है। अगर इस डेटा के अधार पर मौजूदा समय में केंद्रीय कर्मचारियों का विश्लेषण करे तो आज के 50 लाख केंद्रीय कर्मचारियों की संख्या का 7 प्रतिशत करीब चार लाख के आस-पास पहुंचता है। इसके अलावा कई सारे पेंशनधारी भी दिल्ली में रहते हैं। इतना ही नहीं दिल्ली में दिल्ली नगर निगम, दिल्ली विकास प्राधिकरण, दिल्ली पुलिस और डिफेंस के साथ कई ऐसे विभाग हैं जो केंद्र सरकार के अंतर्गत आते हैं।
राजनीतिक विश्लेषक इसे दिल्ली चुनाव के साथ केंद्रीय कर्मचारियों की नाराजगी से जोड़कर देख रहे हैं। राजनीतिक विश्लेषकों की माने तो दिल्ली चुनाव के बीच में ही यह घोषणा हुई है इसलिए इसका चुनाव से कनेक्शन जोड़ा जा सकता है। लोकसभा चुनाव में भले ही बीजेपी सातों सीटें जीती थी लेकिन सरकारी कर्मचारियों के प्रभाव वाली विधानसभाओं में बीजेपी पिछड़ गई थी।