आधुनिकता के मार : धीमी चाक म रेंगत हे कुम्हार मन के जिनगी, विलुप्ति के कगार म पुश्तैनी धंधा
तिल्दा-नेवरा। माटी के कला ले जुड़के गुजर-बसर करने वाला कुम्हार अउ मूर्तिकार मन के हुनर अब दांव म हे। काबर कि ए कलाकार मन ल मेहनत के अनुरूप मेहनताना नइ मिल पावत हे। बावजूद संघर्ष अउ जद्दोजहद के जिंदगी जीये बर मजबूर हे। अवइया गणेशोत्सव परब ल लेके तैयारी शुरू होगे हे। मूर्तिकार मन घलो मूर्ति मन ल आकार देवत हे। शहर ले देहात तक अवइया गणेशोत्सव पर्व ल लेके तैयारी शुरू होगे हे। गणेश मूर्ति बनाय के काम जोर-शोर ले चलत हे अउ मूर्ति ल अंतिम रूप दे म मूर्तिकार जुटे हुए हे। ए कोती माटी के नंदिया बइला अउ जांता पोरा बनइया कुम्हार मन थोड़ा मायूस हे।
काबर कि माटी के बने सामान के खरीदार नइ हे। लकड़ी अउ प्लास्टिक के सामान के ज्यादा मांग हे। लिहाजा रोजी-रोटी के समस्या खड़ा होवत हे। बरसों ले माटी के कारीगरी कर जीवनयापन करत मूर्तिकार मन के मानन त ए बछर ओमन ल मूर्ति के आर्डर अच्छा मिलत हे। फेर महंगाई के बाढ़े ले रंग रोगन के सामान, मूर्ति श्रृंगार अउ सजावटी सामान के कीमत घलो बाढ़ गेहे। जेकर कारण मूर्ति निर्माण करे म खर्चा ज्यादा आवत हे। बाहर ले घलो वर्कर अउ पेंटर काम करे ल आथे ओकरो मन के मजदूरी ह बाढ़ गेहे। ए कारण ए बार मूर्ति मन के रेट घलो बाढ़ गेहे। तीजा-पोरा म अपन हाथ के हुनर ले दूसर के चेहरा म खुशी बिखरइया कुम्हार मन के ही चेहरा ले खुशी गायब हे।
आधुनिकता के आघू पारंपरिक सामान फीका
पुश्तैनी व्यवसाय ले जुड़े कुम्हार मन ल कड़ी मेहनत करे के बावजूद भी परिवार के भर पेट भोजन मयस्सर नइ हो पावत हे। काबर कि आधुनिक सामान के बाढ़त मांग के कारण कुम्हार मन के माटी ले बनाए सामान के मांग घट गेहे। तीजा-पोरा के मौका म माटी ले बने जांता,पोरा,नंदिया बैला,दीया,चुकिया,मटकी,नांदी,
कलशा अउ खिलौना आदि के मांग अब कम होगे हे। जब ले बाजार म लकड़ी अउ प्लास्टिक के बने जांता,पोरा,बैला,खिलौना आय ल धर लेहे तब ले माटी के खिलौना अपन अस्तित्व के लड़ाई लड़त हे। कुम्हार मन के कहना हे कि ओमन पहिली माटी ले बने सामान बेचे ल जावय। बाजार अउ मेला म घलो माटी ले बने रंग बिरंगा खिलौना के काफी मांग राहय लेकिन आज लइका मन माटी के खिलौना के जगह प्लास्टिक के खिलौना ज्यादा पसंद करत हे। जरूरत के आघू मौन कुम्हार के ठहरे हुए चाक अब समाज के हर व्यक्ति ले माटी के बने वस्तु के प्रयोग करे के गुजारिश करत हे।
पुश्तैनी व्यवसाय म खतरा मंडरावत हे
आधुनिकता के चलत कुम्हार मन के पुश्तैनी धंधा म खतरा मंडरावत हे। बदलत परिवेश अउ बदलत रूचि के आघू अब एकर व्यवसाय दम तोड़त हे। लागत अउ परिश्रम के मुताबिक कीमत नइ मिले ले कुम्हार मन कुम्हलाए नजर आवत हे।
जीविकोपार्जन के दूसरा कोई विकल्प नइ होय के कारण मजबूरन ए पुश्तैनी व्यवसाय ले जुड़े रहे के विवशता हे। पारंपरिक व्यवसाय कर पुरखा के माटी कला ल जिंदा रखइया कुम्हार मन के रोजी-रोटी छीनावत जात हे अउ एमन अपन परंपरागत धंधा ले विमुख होवत हे।
आधुनिकता के रंग म रंगे दुनिया अब माटी के वस्तु ले मुँह मोड़त हे। अपन माटी के दीया ले जग ल अंजोर करइया कुम्हार मन के ही जीवन म अंधेरा छाय ल धर लेहे। धीमी चाक म रेंगत कुम्हार मन के जिंदगी आखिर कब रफ्तार पकड़ही ए तो अब देखे वाला बात होही।