ये पब्लिक है बिगड़ने में ज़रा सी देर लगती है..! ये कुर्सी है बदलने में ज़रा सी देर लगती है…! यशवंत खेडुलकर..

ज़ब्र को ज़ेर करने में ज़रा सी देर लगती है...
ये पब्लिक है बिगड़ने में ज़रा सी देर लगती है…
सियासत की बुलंदी पर यकीं इतना नहीं करतें...
ये कुर्सी है बदलने में ज़रा सी देर लगती है...
शादाब जफर शादाब की लिखी उपरोक्त पंक्तियाँ आज छत्तीसगढ़,राजस्थान के चुनावी परिणाम पश्चात कॉंग्रेस पर सटीक बैठती हैं।छत्तीसगढ़ की यदि हम बात करें तो कल तक जिस कुर्सी पर भूपेश विराजमान थे आज भाजपा विष्णुदेव साय को मुख्यमंत्री घोषित कर आगामी पाँच वर्षों के लिए छत्तीसगढ़ प्रदेश की माईबाप बन गई है। छत्तीसगढ़ में भाजपा अपनी जिस अप्रत्याशित जीत पर इतरा रही है वो ये भूल जाना चाहती है कि 2018 में इसी भाजपा के 15 वर्षों के शासनकाल को छत्तीसगढ़ की जनता ने उखाड़ फेंका था और भारी भरकम बहुमत देकर कॉंग्रेस को सत्ता सौंपी थी।उस समय एंटी इनकम्बेंसी फ़ैक्टर ही तो था जिसने भाजपा के पंद्रह वर्षो के राजपाट को एक झटके में खत्म कर दिया था।प्रदेश की जनता ने झीरम कांड,आँख फोड़वा कांड, नसबंदी कांड,सीडी कांड सहित रतन जोत,नान,प्रियदर्शी बैंक जैसे घोटालों की लंबी फेहरिस्त से आजिज आकर तत्कालीन रमन सरकार का तख्ता पलट दिया था। सीडी कांड के जरिए छत्तीसगढ़ प्रदेश की राजनीति में भूचाल लाने वाले तत्कालीन प्रदेश कॉंग्रेस अध्यक्ष भूपेश बघेल और उनके करीबी विनोद वर्मा पर राज्य पुलिस की कार्रवाई ने दोनों को ही छत्तीसगढ़ की जनता की नजरों में सहानुभूति का पात्र बना दिया था।इसी सहानुभूति की लहर पर सवार होकर भूपेश बघेल ने मुख्यमंत्री पद के प्रमुख दावेदार टी एस सिंहदेव को पीछे छोड़ते हुए कॉंग्रेस आलाकमान से छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री के रूप में अपनी ताजपोशी करवा ली थी।शुरुआती दौर में भूपेश बघेल ने रमन सरकार के समय की कई योजनाओं पर ग्रहण लगाते हुए अपनी किसान हितैषी,छत्तीसगढ़िया वादी छवि बनाने एवं निखारने तमाम नए प्रयोगों की प्रयोगशाला छत्तीसगढ़ को बनाया।इनमें गोठान, नरवा गरवा घुरवा बाड़ी योजना,छत्तीसगढ़ी ओलम्पिक खेल अंतर्गत पारंपरिक एवं देशी खेलों को बढ़ावा देना,छत्तीसगढ़ी संस्कृति से जुड़े तीज त्योहारों को सरकारी कार्यक्रमों में शामिल किया जाना व छुट्टी देना,सप्ताह के पांच दिनों को ही कार्यदिवस घोषित करने जैसे अनेकानेक प्रयोग शामिल थे। एक वक्त ऐसा भी था कि इनमें से कुछ प्रयोगों को राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सराहना भी मिल रही थी।धान खरीदी के मुद्दे पर केंद्र सरकार से तकरार ने भूपेश बघेल को राष्ट्रीय मीडिया में भी सुर्खियां दिलाई थी। रमन सरकार को हर वक्त भ्रष्टाचार के मुद्दों पर घेरने वाली कॉंग्रेस भूपेश के नेतृत्व में सरकार बनने के बाद इससे अछूती नहीं रही। तत्कालीन दागी अफसरों बजाए हटाने के अपने लिए कलेक्शन एजेंट बतौर उपयोग करने लगी।शासकीय विभागों में तबादला एक उद्योग की भांति पनपने लगा।भ्रष्टाचार की कमाई ने उत्साह को जन्म दिया और उत्साह के अतिरेक ने नई योजनाओं के क्रियान्वयन में घोटालों को जन्म दिया यही नहीं चुनावी वादों में से एक प्रमुख वादा शराबबंदी का जोकि सीधे तौर पर छत्तीसगढ़ की जनता से था उससे बड़ी ही चतुराई से दूरी बनाकर उसमें कथित तौर पर 2000 करोड़ के घोटाले को अंजाम दिया गया।केंद्रीय जाँच एजेंसी ईडी के छापों से कोल स्कैम, नकली होलोग्राम,क्रिकेट सट्टा एप जैसे कथित स्कैमों के पर्दाफ़ाश होने की खबरों एवं भूपेश बघेल के करीबियों की गिरफ्तारी के बीच एक ओर भूपेश सरकार एक हाथ से किसानों का कर्जा माफ़, बिजली बिल हाफ,स्वामी आत्मानन्द इंग्लिश मीडियम स्कूल जैसी योजनाओं का लाभ जनता को दे रही थी वही दूसरी ओर सरिया,सीमेंट कंपनियों को मनमाने दाम बढ़ाने की छूट देकर अप्रत्यक्ष रूप से छत्तीसगढ़ की जनता को लूटने की छूट भी दे दी थी।सरकारी एवं नजूल भूमि पर काबिज़ लोगों को मालिकाना हक देने हेतु चलाई गई योजना से लगभग 80 प्रतिशत वास्तविक हकदार वंचित रहे और सरकारी कोष में जमा होने वाला अपेक्षित राजस्व सरकार के भ्रष्ट राजस्व अमले की जेब भरने लगा। एक वक्त ऐसा भी आया कि प्रदेश में पूर्व निर्धारित ढाई साल के मुख्यमंत्री के फॉर्मूले पर अमल किया जाकर टी एस सिंहदेव को मुख्यमंत्री पद सौंपने से भूपेश बघेल के इनकार करने से प्रदेश की कॉंग्रेस सरकार संकट में आ गयी थी लेकिन यहाँ भी भूपेश की चतुराई से टी एस बाबा दरकिनार कर दिए गए एवं आखिरी समय में उपमुख्यमंत्री पद से संतोष करना पड़ा।अन्य राज्यों में चुनाव लड़ने के लिए भूपेश बघेल की पार्टी को की गयी फंडिंग और गाँधी परिवार की ख़ातिरदारी ने अंतिम तक भूपेश के मुख्यमंत्रित्व काल को जीवित रखा।कुल मिलाकर भूपेश बघेल एक सफ़ल राजनेता के रूप में भले ही स्थापित होते जा रहे थे लेकिन जननेता के रूप में उनकी छवि ख़राब हो रही थी।विपक्ष सहित कॉंग्रेस के अन्य मंत्रियों और बड़े नेताओं के साथ सामंजस्य बिठाने में उनका अहंकार आड़े आने लगा जिसकी गूँज अब सत्ता खोने के बाद राजनीति के गलियारों में प्रतिध्वनित हो रही है।एक बात और भूपेश बघेल सहित कॉंग्रेस ने भी पिछली बार की जीत से यही मान लिया था कि सत्ता की राह किसानों की कोठरियों से होकर निकलती है इसलिए भी पीएससी घोटाले पर शिक्षित बेरोजगार युवाओं, शासकीय कर्मचारियों के मांगों की अनदेखी की गयी जिससे उपजे असंतोष का लाभ भाजपा को प्रत्यक्ष रूप से मिला।
तिमिर गया रवि देखते, कुमति गयी गुरु ज्ञान।
सुमति गयी अति लोभते, भक्ति गयी अभिमान।।