जुलाई में इस दिन शुरू हो रहा है सावन, कांवड़ यात्रा भी होगी शुरू, जानिए नियम

धार्मिक एवं आध्यात्मिक दृष्टि से सावन महीना हिंदू श्रद्धालुओं के लिए बड़ा महत्व रखता है। हर साल की तरह सावन महीने की शुरूआत के साथ कांवड़ यात्रा भी शुरु हो जाती है। इस बार सावन का महीना 11 जुलाई से शुरू हो रहा है। आपको बता दें, सावन महीना में होने वाली कांवड़ यात्रा लाखों शिव भक्तों की आस्था का प्रतीक है। यह पूरी तरह से भगवान शिव को समर्पित।
कहते हैं कि इसमें शामिल होने से भक्तों के सभी दुखों का अंत होता है और शिव जी की कृपा मिलती है। हिंदू पंचांग के अनुसार, इस साल यह यात्रा 11 जुलाई से शुरू होगी। वहीं, जो लोग इस पावन यात्रा में शामिल होते हैं, उनके और उनके परिवार के लिए कुछ नियम बताए गए हैं, जिनका पालन सभी को करना चाहिए। इससे उस यात्रा का पूरा फल मिलता है। ऐसे में आइए जानते है कांवड़ यात्रा के क्या हैं नियम। इस दौरान क्या करें और क्या नहीं।
कब शुरू होगी कांवड़ यात्रा
आपको बता दें, पंचांग के अनुसार, सावन महीने के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि की शुरुआत 11 जुलाई को देर रात 2 बजकर 6 मिनट से होगी। वहीं, इसका समापन अगले दिन यानी 12 जुलाई को देर रात 2 बजकर 8 मिनट पर होगा।
पंचांग गणना के आधार पर इस साल सावन माह की शुरुआत 11 जुलाई से होगी और इसका समापन 9 अगस्त को होगा। इसके साथ ही कांवड़ यात्रा की शुरुआत भी सावन के साथ यानी 11 जुलाई से होगी।
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क्या है कांवड़ यात्रा के नियम जानिए
कांवड़ यात्रा के दौरान शिवभक्तों को कई नियमों का पालन करना पड़ता है। जो इस प्रकार है-
कांवड़ यात्रा के दौरान पूर्ण सात्विकता रखनी चाहिए।
इस दौरान तामसिक चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए, चाहे कावड़िया हो या फिर उसरे परिवार के सदस्य।
कांवड़ को हमेशा शुद्ध और पवित्र रखना चाहिए, इसे जमीन पर नहीं रखना चाहिए।
अगर किसी वजह से इसे नीचे रखना पड़े, तो किसी स्वच्छ स्थान पर लकड़ी या कपड़े के ऊपर ही रखें।
कांवड़ को अपवित्र हाथों से नहीं छूना चाहिए।
यात्रा के दौरान ब्रह्मचर्य का पालन करना अनिवार्य माना गया है।
यात्रा के दौरान मन को शांत रखना चाहिए।
इस दौरान वाद-विवाद या क्रोध करने से बचना चाहिए।
यात्रा के दौरान भगवान शिव का ध्यान और भजन करते रहना चाहिए।
ज्यादा कांवड़ यात्री नंगे पैर ही यात्रा करते हैं, क्योंकि इसे तपस्या का एक हिस्सा माना जाता है।
हालांकि, यह अपनी शारीरिक क्षमता के अनुसार साधक को ये निर्णय लेना चाहिए।
यात्रा के दौरान रास्ते में अन्य कांवड़ियों या किसी भी व्यक्ति को परेशान न करें।
साधक जिस गंगाजल को लेकर चल रहे हों, उसकी पवित्रता का विशेष ध्यान दें।
यात्रा के दौरान स्वच्छता का ध्यान रखें।