चूहा ही नहीं, श्रीगणेश के और भी हैं सवारी, जानिए कलयुग में क्या है उनका वाहन

हर साल भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाने वाला गणेश चतुर्थी का पावन पर्व आज से शुरू हो गया है। जैसा कि,आप जानते है कि यह उत्सव पूरे दस दिनों तक चलता है और महोत्सव की धूम पूरे देशभर में होती है। इस दौरान भक्त बप्पा को घर लाते हैं और उनकी मूर्ति को घर में स्थापित कर पूजा- पाठ करते है।
गणेश उत्सव के दौरान गणेश जी की जो मूर्ति घर लाई जाती है उसमें भी गणेश जी का वाहन चूहा यानी मूषक ज़रूर होता है। हर देवी-देवता का कोई ना कोई वाहन होता है जिस पर वह सवारी करते हैं। ऐसे ही भगवान गणपति की अलग-अलग युग में अलग-अलग सवारी हैं, जिनका महत्व बताया गया है। ऐसे में आज गणेश चतुर्थी के शुभ अवसर पर मूषक के साथ-साथ और कौन-कौन से हैं गणेश जी के वाहन।
मूषक ही नहीं यह भी हैं गणपति की सवारी
सिंह
सतयुग में भगवान गणेश जी का वाहन सिंह है और उनकी भुजाएं 10 है और नाम विनायक है। भगवान गणेश ने भोलेनाथ और माता पार्वती के घर जब जन्म लिया जो उनका नाम विनायक रखा गया।
मयूर
त्रेतायुग में श्री गणेशजी का वाहन मयूर है इसलिए उनको मयूरेश्वर कहा गया है। उनकी भुजाएं 6 हैं और रंग श्वेत।
मूषक
द्वापरयुग में उनका वाहन मूषक है और उनकी भुजाएं 4 हैं। इस युग में वे गजानन नाम से प्रसिद्ध हैं और उनका वर्ण लाल है।
घोड़ा
कलियुग में उनका वाहन घोड़ा है और वर्ण धूम्रवर्ण है। इनकी 2 भुजाएं हैं और इस युग में उनका नाम धूम्रकेतु है।
चूहा कैसे बना गणेश जी की सवारी
गणेश जी की सवारी मुख्य रूप से मूषक यानी चूहा है। ऐसी मान्यता है कि एक बार क्रौंच नाम के अभिमानी गंधर्व ने वामदेव नाम के ऋषि का अपमान कर दिया, जिससे क्रोधित होकर उन्होंने क्रौंच को चूहा बनने का श्राप दे दिया।
जब वह विशाल चूहे में बदल गया तो उसने आस-पास के क्षेत्र में नुकसान पहुंचाकर आतंक मचा दिया। इसके बाद ऋषियों द्वारा भगवान श्री गणेश की स्तुति करने पर उन्होंने इसे अपने पाश से बांध लिया।
जब चूहे ने गणपति से माफी मांगी तो उन्होंने उसका अभिमान दूर करने के लिए अपनी सवारी बना लिया।




