चांद पर अमेरिका लगाएगा न्यूक्लियर रिएक्टर, US की चाल से रेस में कूदे रूस-चीन, जानें क्या है माजरा?

अमेरिका आने वाले पांच वर्षों में यानि 2030 तक चांद की सतह पर एक परमाणु रिएक्टर स्थापित करने की योजना बना रहा है। इससे पहले वह वहां एक बेस और इंसानों के लिए बस्ती भी बसा सकता है, जिसमें कुछ घरों का निर्माण किया जाएगा। सवाल यह है कि नासा आखिर ऐसा क्यों कर रहा है? चांद पर बनने वाला यह रिएक्टर वहां किस काम आएगा? दिलचस्प बात यह है कि अमेरिका की ही तरह रूस और चीन भी चांद पर इसी तरह की तैयारी कर रहे हैं।
अमेरिका की “आर्टेमिस योजना” के तहत 2026 तक वह एक बार फिर इंसानों को चांद पर भेजने की तैयारी कर रहा है। इस मिशन का उद्देश्य चांद पर एक स्थायी लूनर बेस स्थापित करना है, जहां भविष्य में मानव लंबे समय तक रह सके। इस पूरे प्रोजेक्ट में ऊर्जा आपूर्ति के लिए एक परमाणु रिएक्टर की अहम भूमिका होगी।
हालांकि यह कदम सिर्फ वैज्ञानिक उपलब्धियों तक सीमित नहीं है इसके पीछे अमेरिका की रणनीतिक सोच भी है, जिसके जरिए वह स्पेस में दबदबा कायम करना चाहता है। यह रूस और चीन पर भू-राजनीतिक बढ़त हासिल करने की दिशा में एक बड़ा कदम है। दिलचस्प बात यह है कि रूस और चीन भी इसी तरह के मिशन में साझेदारी की कोशिश कर रहे हैं।
चांद पर भविष्य में लंबे समय तक मानव उपस्थिति, अनुसंधान केंद्र स्थापित करने और खनिज संसाधनों की खुदाई जैसे कार्यों के लिए एक स्थायी और भरोसेमंद ऊर्जा स्रोत की आवश्यकता है। चूंकि चांद पर दिन और रात का चक्र 14-14 दिनों का होता है यानी पृथ्वी के लगभग 28 दिन इसलिए वहां सौर ऊर्जा सीमित हो जाती है। खासकर 14 दिनों की लंबी रात के दौरान बिजली की भारी जरूरत होती है। ऐसी स्थिति में लगातार और निर्बाध बिजली आपूर्ति के लिए परमाणु ऊर्जा को सबसे उपयुक्त और विश्वसनीय विकल्प माना जा रहा है.
अमेरिका की स्पेस एजेंसी NASA ऊर्जा विभाग और कुछ निजी कंपनियां मिलकर एक खास प्रकार का न्यूक्लियर रिएक्टर बना रही है। जिसे फिजन सरफेस पावर सिस्टम कहा जाता है। यह प्रणाली निरंतर 40 किलोवॉट बिजली का उत्पादन कर सकेगी और वह भी लगभग 10 सालों तक बिना किसी रुकावट के। इतनी ऊर्जा से करीब 30 घरों की बिजली जरूरतें पूरी हो सकती हैं, जो चंद्रमा पर प्रस्तावित लूनर बेस के लिए पर्याप्त मानी जा रही है।
यह रिएक्टर पृथ्वी से चंद्रमा तक भेजा जाएगा और वहां इसे स्थापित किया जाएगा। इसकी डिजाइन को हल्का और कॉम्पैक्ट रखा गया है ताकि इसे ले जाना आसान हो। इसमें हाई-अस्से एनरिच्ड यूरेनियम (HALEU) का इस्तेमाल किया जाएगा, जो एक ऐसा ईंधन है जिससे यह प्रणाली पूरी तरह स्वचालित ढंग से काम करेगी और इसके संचालन में किसी मानव हस्तक्षेप की जरूरत नहीं होगी।
इस परियोजना का लक्ष्य है कि इसे 2030 तक चंद्रमा की सतह पर, विशेष रूप से दक्षिणी ध्रुव के निकट, स्थापित किया जाए, जहां जल बर्फ की मौजूदगी भी दर्ज की गई है।
रूस और चीन धरती पर अक्सर अमेरिका के साथ प्रतिस्पर्धा की स्थिति में रहते हैं और अब अंतरिक्ष में भी अमेरिका को पीछे छोड़ने की कोशिश कर रहे हैं। इन दोनों देशों की भी स्पेस न्यूक्लियर टेक्नोलॉजी को लेकर बड़ी योजनाएं हैं। चीन चांद पर अपने बेस स्थापित करने की दिशा में काम कर रहा है, जिसके लिए परमाणु रिएक्टर जैसी उन्नत तकनीकों की आवश्यकता होगी।
हाल ही में एक अंतरराष्ट्रीय ढांचा तैयार करने पर विचार हो रहा है, जिसके तहत चांद और अन्य खगोलीय पिंडों पर परमाणु तकनीक के इस्तेमाल को लेकर साझा दिशा-निर्देश और मानक बनाए जा सकते हैं। इस पहल में अमेरिका, रूस और चीन तीनों शामिल हो सकते हैं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि कोई भी देश इन तकनीकों का सैन्य उपयोग न करे।