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क्या कोरोना टीकों की वजह से अचानक मर रहे लोग, AIIMS की स्टडी ने खत्म कर दिया शक

नई दिल्ली. केंद्रीय परिवार एवं स्वास्थ्य कल्याण मंत्रालय ने बुधवार को कहा कि कोरोना वैक्सीन और हार्ट अटैक की वजह से होने वाली अचानक मौतों में कोई संबंध नहीं है। इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) और ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (AIIMS) की ओर से किए गए गहन अध्ययन के आधार पर मंत्रालय ने यह बात कही है।

कोरोना महामारी के बाद कई लोग चलते, फिरते, नाचते-गाते अचानक दम तोड़ते दिखे। एक के बाद एक इस तरह के चौंकाने-डराने वाले वीडियो सामने आए और कई लोगों ने इन मौतों के लिए कोरोना टीकों पर शक जाहिर करना शुरू कर दिया था।

मंत्रालय की ओर से जारी बयान में कहा गया,’आईसीएमआर और नेशनल सेंटर फॉर डिसीज कंट्रोल (NCDC) की ओर से किए अध्ययन ने इस बीत की पुष्टि की है कि भारत में कोरोना वैक्सीन के टीके सुरक्षित और प्रभावी हैं। गंभीर साइड इफेक्ट्स के मामले बेहद दुर्लभ हैं।’बयान में कहा गया है कि अचानक कार्डिएक अरेस्ट वाली मौत के कई कारक हो सकते हैं जिनमें जेनेटिक्स, लाइफ स्टाइल, पहले से मौजूद समस्याएं और कोरोना के बाद की जटिलताएं शामिल हैं।

मंत्रालय की ओर से कहा गया, ‘अचानक कार्डिएक अरेस्ट मौतों के कई कारक हो सकते हैं, जिनमें जेनेटिक्स, लाइफस्टाइल, पहले से मौजूद समस्याएं और कोरोना संक्रमण की जटिलताएं शामिल हैं। वैज्ञानिकों ने दोहराया है कि कोरोना टीकों और अचानक मौतों को जोड़ने वाले बयान गलत और भ्रामक हैं। वैज्ञानिकों ने इनका समर्थन नहीं किया है।’

रिलीज के मुताबिक, आईसीएमआर और एनसीडीसी की ओर से 18 से 45 साल की उम्र के युवा लोगों की अचानक होने वाली मौतों को समझने के लिए अध्ययन किया गया। दो अलग-अलग तरीके से रिसर्च किया गया एक पुराने डेटा के आधार पर और दूसरा रियल टाइम जांच के आधार पर। पहला अध्ययन मई से अगस्त 2023 के बीच 19 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के 47 अस्पतालों में किया गया। इसमें अक्टूबर 2021 से मार्च 2023 के बीच मरे ऐसे लोगों की पड़ताल की गई जो स्वस्थ दिख रहे थे और अचानक मौत हो गई।

दूसरा अध्ययन एम्स और आईसीएमआर की ओर से किया जा रहा है। इसके जरिए युवाओं की अचानक मौतों की वजहों को समझने की कोशिश की जा रही है। डेटा के शुरुआती विश्लेषण से पता चलता है कि हार्ट अटैक या मायोकार्डियल इन्फार्क्शन अचानक मौतों की सबसे बड़ी वजहें हैं। महत्वपूर्ण बात यह है कि पिछले वर्षों की तुलना में कारणों के पैटर्न में कोई बड़ा बदलाव नहीं देखा गया है।

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