
प्रेग्नेंसी के दौरान कई तरह के टेस्ट और स्कैन करवाए जाते हैं। ये एक ऐसा समय होता है जब महिलाओं को सावधानियां बरतनी चाहिए। जब इस बात की जानकारी होती है कि महिला ने कंसीव कर लिया है, तब से ही तरह-तरह की जांच होने लगती हैं, जिसमें अल्ट्रासाउंड का होना सबसे कॉमन है। प्रेग्नेंसी में अल्ट्रासाउंड करवाना नॉर्मल बात है। इस दौरान बच्चे की हर हरकत को देखा जा सकता है। हालांकि, कुछ लोगों का मानना है कि बार-बार इस स्कैन से बच्चे को नुकसान पहुंचता है। ऐसे नें यहां जानिए कि प्रेगनेंसी में कब अल्ट्रासाउंड करवाना चाहिए और इस टेस्ट से बच्चे पर क्या असर होता है।
कब अल्ट्रासाउंड करवाना रहता है सही
ये टेस्ट बच्चे की उम्र, ग्रोथ, डिलीवरी डेट, बच्चे की दिल की धड़कन, मसल टोन, मूवमेंट को देखने के लिए किया जाता है। पहली बार प्रेग्नेंसी का पता लगाने के लिए 6 से 8वें हफ्ते में पहला अल्ट्रासाउंड करवाना चाहिए। हालांकि, प्रेग्नेंसी के 18वें और 22वें हफ्ते में सोनोग्राम करवा सकती हैं। इसके अलावा 14वें हफ्ते से पहले अल्ट्रासाउंड करवाया जा सकता है। इसके अलावा हाई रिस्क प्रेग्नेंसी में डॉक्टर की सलाह पर ये स्कैन करवा सकते हैं।
क्या अल्ट्रासाउंड से बच्चे पर होता है असर
रिपोर्ट्स का कहना है कि जब महिला की स्थिति पूरी तरह से ठीक होती है तो कम से कम तीन से चार अल्ट्रासाउंड किये जाते हैं। हालांकि, किसी तरह कि दिक्कत होने पर ये नंबर बदल सकते हैं। अब बात आती है कि क्या अल्ट्रासाउंड से बच्चे पर कोई बुरा असर होता है? इस बारे में रिपोर्ट्स का कहना है कि अल्ट्रासाउंड का बच्चों के विकास या भ्रूण पर किसी तरह का असर नहीं होता है। हालांकि, 18 हफ्ते में अगर बार-बार अल्ट्रासाउंड किया जाए, तो भ्रूण पर इसका बहुत मामूली असर पड़ सकता है।