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औषधीय गुणों से भरपूर है मुनगा, इससे 300 रोगों का होता है उपचार

रायपुर।  राज्य के महात्मा गांधी उद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय मुनगा (सहजन) के औषधीय गुणों की पहचान करके इसकी सर्वाधिक पौष्टिक प्रजातियों पर अनुसंधान करेगा। राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के अंतर्गत केंद्र सरकार ने परियोजना को स्वीकृति दी है। उद्यानिकी महाविद्यालय एवं अनुसंधान केंद्र साजा, बेमेतरा को अनुसंधान केंद्र के रूप में चयनित किया गया है। कोरोना काल में मुनगा पर कई अनुसंधान हुए हैं।

आयुर्वेद में भी 300 रोगों का मुनगा से उपचार बताया गया है, लेकिन आधुनिक विज्ञान ने इसके पोषक तत्वों की मात्रा खोजकर संसार को चकित कर दिया है। इसकी फली, हरी पत्तियों व सूखी पत्तियों में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, कैल्शियम, पोटेशियम, आयरन, मैग्नीशियम, विटामिन-ए, सी और बी काम्पलैक्स प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। अब विश्वविद्यालय के विज्ञानी उन प्रजातियों को खोजेंगे जो कि सर्वाधिक गुणवत्ता वाले हैं। स्थानीय बोलियों में मुनगा को सहजना, सुजना, सैजन या सहजन के नाम से भी जाना जाता है।

छत्तीसगढ़ का मुनगा पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड और दक्षिण भारत के राज्यों में भेजा जाता है। दक्षिण भारत के राज्यों में इसे सब्जी के साथ ही सांभर में डालकर खाया जाता है।

बिहार और झारखंड में भी सब्जी के रूप में इसका लोग सेवन करते हैं। पश्चिम बंगाल में इसे खाने के साथ ही दवाई के तौर पर भी उपयोग किया जाता है। कृषि विज्ञानियों ने बताया कि देश में मुनगा की फसल वैसे तो सालभर होती है, लेकिन दिसंबर से लेकर मार्च तक इसकी पैदावर काफी बढ़ जाती है।

मुनगा के फूल, पत्ती और फल तीनों ही औषधीय गुणों से भरपूर हैं। कोरोना काल में आयुर्वेद कालेज रायपुर में रिसर्च भी किया गया था। इसमें पाया गया कि इसका काढ़ा साइटिका (पैरों में दर्द), जोड़ों में दर्द, लकवा, दमा, सूजन, पथरी में लाभकारी है। इसकी गोंद जोड़ों के दर्द में लाभदायक है। कृषि विज्ञानी ने बताया कि छत्तीसगढ़ में मुनगा दो प्रकार के होते हैं। एक बरमसी और दूसरा सगवान। बरमसी मुनगा 12 माह फल देता है। सगवान जनवरी से मार्च-अप्रैल तक।

बाड़ी, खेतों की मेड़ों पर खेती

आमतौर मुनगा की खेती गांवों में घरों की बाड़ी और खेतों की मेड़ों पर होती है। खाली पड़ी जमीन में भी की जाती है। कृषि विज्ञानियों के अनुसार मुनगा के पौधे लगाने के बाद दो साल तक सहेजने की जरूरत होती है। जब मुनगा का पेड़ बढ़ जाता है तो फिर इसकी देखरेख भी नहीं करनी पड़ती है। बीच में थोड़ा बहुत दवाई छिड़काव करना पड़ता है, लेकिन मुनाफा अच्छा होता है।

महात्मा गांधी उद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय निदेशक अनुसंधान डा. जितेंद्र सिंह ने कहा, छत्तीसगढ़ के मुनगा पर अनुसंधान के लिए राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत केंद्र सरकार ने परियोजना को स्वीकृति दी है। इसके लिए उद्यानिकी महाविद्यालय एवं अनुसंधान केंद्र साजा, बेमेतरा को चयनित किया गया है। यहां जल्द ही मुनगे पर अनुसंधान कार्य शुरू होंगे।

आमतौर मुनगा की खेती गांवों में घरों की बाड़ी और खेतों की मेड़ों पर होती है। खाली पड़ी जमीन में भी की जाती है। कृषि विज्ञानियों के अनुसार मुनगा के पौधे लगाने के बाद दो साल तक सहेजने की जरूरत होती है। जब मुनगा का पेड़ बढ़ जाता है तो फिर इसकी देखरेख भी नहीं करनी पड़ती है। बीच में थोड़ा बहुत दवाई छिड़काव करना पड़ता है, लेकिन मुनाफा अच्छा होता है।

महात्मा गांधी उद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय निदेशक अनुसंधान डा. जितेंद्र सिंह ने कहा, छत्तीसगढ़ के मुनगा पर अनुसंधान के लिए राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत केंद्र सरकार ने परियोजना को स्वीकृति दी है। इसके लिए उद्यानिकी महाविद्यालय एवं अनुसंधान केंद्र साजा, बेमेतरा को चयनित किया गया है। यहां जल्द ही मुनगे पर अनुसंधान कार्य शुरू होंगे।

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