देश विदेश

अभी मंदी नहीं, मौके की तलाश करें!” – C J जॉर्ज ने बताया IPO मार्केट का हाल

“अभी मंदी नहीं, मौके की तलाश करें!” – C J जॉर्ज ने बताया IPO मार्केट का हाल
Updated on 21 Apr, 2025 06:11 AM IST BY NEWS4INDIATV.COM
KooApp

टैरिफ की घोषणा और इनकी वापसी ने बाजारों को चिंतित और निवेशकों को अटकल लगाने पर मजबूर कर दिया है। जियोजित फाइनैंशियल सर्विसेज के चेयरमैन और प्रबंध निदेशक सी जे जॉर्ज ने कहा कि पिछले तीन-चार वर्षों में जुटाई गई अहम पूंजी के कारण भारतीय कंपनियों पर टैरिफ का असर सीमित रहने की उम्मीद है। संपादित अंश:

आप भारत में पूर्ण सेवा देने वाली बड़ी ब्रोकरेज फर्मों में से एक हैं, जिसके पास करीब एक लाख करोड़ रुपये की प्रबंधनाधीन परिसंपत्तियां हैं। एक ब्रोकरेज के रूप में आप और उद्योग कारोबार की मात्रा में अचानक आई गिरावट और ट्रेडरों और निवेशकों की घटती दिलचस्पी से कैसे निपट रहे हैं?

ब्रोकरेज कारोबार हमेशा ही उतारचढ़ाव भरा रहा है और इसलिए नीचे की ओर जाने वाले चक्रों के लिए हम सांगठनिक रूप से तैयार रहते हैं। लागत को बहेतर करके और आय के वैकल्पिक तरीके खोजकर हम हमेशा मंदी का प्रबंधन करते हैं। इसका मतलब कि उद्योग की सभी कंपनियों के ब्रोकरेज राजस्व पर असर पड़ेगा। जियोजित पिछले कुछ समय से वितरण कारोबार को बढ़ा रही है जो ब्रोकरेज आय के विपरीत अपेक्षाकृत कम प्रभावित है। हम पहलेकी तरह खुदरा संपत्ति कारोबार बढ़ाने पर फोकस करते रहेंगे।

प्राथमिक बाजार में आपको कब तक सुधार आता दिख रहा है?

यदि सेकंडरी बाजार सुस्त है तो इसका तत्काल असर प्राथमिक बाजार में दिखाई देगा जो कि अभी दिख भी रहा है। हालांकि, प्राथमिक बाजार के सर्द हो जाने पर उद्योग पर इसका असर ज्यादा होता है। उद्योग को निवेश के लिए पूंजी की निरंतर आवश्यकता होती है और अगर वह धार सूख जाती है तो कमजोर निवेश के कारण औद्योगिक विकास भी सुस्त हो जाएगा। प्राथमिक निर्गमों में उछाल का अगला चक्र अमेरिकी व्यापार नीतियों में स्थिरता के बाद आएगा। तब तक उद्योग को पूंजी जुटाने के लिए निजी इक्विटी का रास्ता देखना होगा।

क्या भारतीय कंपनी जगत टैरिफ युद्ध के लिए तैयार है?

पिछले तीन-चार वर्षों में जुटाई गई जोरदार पूंजी के कारण भारतीय कंपनियों पर टैरिफ का प्रभाव सीमित रहने की उम्मीद है, जिन्होंने अल्पावधि से मध्यम अवधि के पूंजीगत व्यय का ध्यान रखा है। निजी कंपनी क्षेत्र की बैलेंस शीट भी काफी अच्छी है, जिससे इक्विटी वित्त की तत्काल जरूरत सीमित हो गई है।

पहली बार बाजार में उतरने वाले निवेशकों को शेयरों का पोर्टफोलियो बनाने के लिए अभी क्या करना चाहिए?

नए निवेशकों को अपनी जोखिम उठाने की क्षमता का विश्लेषण करने और अपने प्रोफाइल के लिए सही निवेश साधन चुनने के लिए खुद को तैयार करना होगा। बाजार की मौजूदा स्थितियां एसआईपी और संचय रणनीतियों के जरिए दीर्घकालिक धन सृजन के लिए अनुकूल प्रवेश का अवसर देती हैं। शेयरों की कीमतें तेजी से आकर्षक होती जा रही हैं जो निवेश का आकर्षक मौका हैं। एक विवेकपूर्ण नजरिया यह होगा कि घरेलू स्तर पर केंद्रित सेक्टरों जैसे उपभोग (एफएमसीजी और टिकाऊ उपभोक्ता वस्तुएं), बुनियादी ढांचा, सीमेंट, दूरसंचार और वित्तीय सेवाओं में निवेश शुरू किया जाए, विशेष रूप से क्षेत्र की अग्रणी लार्जकैप कंपनियों को लक्षित करके। म्युचुअल फंडों की योजनाएं सभी सेक्टरों में उचित विविधीकरण और संतुलित आवंटन का पर्याप्त मौका मुहैया करा रही हैं। चूंकि भारत की वैश्विक व्यापार पर निर्भरता अपेक्षाकृत कम है और उसके क्षेत्रीय आपूर्ति श्रृंखला बदलाव का संभावित लाभार्थी होने के कारण नए इक्विटी निवेशक तुरंत एसआईपी शुरू कर सकते हैं।

निवेशकों की आदर्श परिसंपत्ति आवंटन रणनीति क्या होनी चाहिए?

एक विविध बहु-परिसंपत्ति आवंटन रणनीति (ऋण योजनाओं, सोने जैसी सुरक्षित परिसंपत्तियों और घरेलू रक्षात्मक शेयरों में उचित निवेश के साथ) जोखिम प्रबंधन और संभावित लाभ पाने के लिए एक समझदारी भरे आवंटन का नजरिया प्रदान करती है। यानी खुदरा निवेशकों के लिए सबसे अच्छी निवेश रणनीति व्यवस्थित निवेश योजना (एसआईपी) है।

मार्च 2025 की तिमाही में कंपनियों के आय सीजन से आपकी क्या उम्मीदें हैं?

दिसंबर-जनवरी से सरकारी खर्च में उछाल मजबूत, हाई प्रीक्वेंसी इंडिकेटरों और तीसरी तिमाही के नतीजों के दौरान कंपनियों के प्रबंधन की उत्साहजनक टिप्पणियों के कारण बाजार कंपनियों की आय को लेकर आशावादी रहा है। चौथी तिमाही का प्रदर्शन तीसरी तिमाही से बेहतर रहने का अनुमान है। हालांकि, वित्त वर्ष 24 की चौथी तिमाही के उच्च आधार के कारण सालाना आधार पर प्रगति धीमी रहने की संभावना है। अभी हम वित्त वर्ष 26 में भारत के लिए 12 से 14 फीसदी की आय वृद्धि के अनुमान पर कायम हैं।

क्या कमोडिटी बाजारों ने उच्च टैरिफ को समाहित किया है?

कमजोर वैश्विक बढ़त परिदृश्य और मंदी के जोखिमों के कारण कीमती धातुओं जैसी कमोडिटीज को लाभ होने की संभावना है। हालांकि कच्चे तेल पर सीधे टैरिफ नहीं लगाया गया लेकिन धीमी वैश्विक वृद्धि के कारण मांग में कमी की चिंताओं ने कीमतों को 2021 के बाद से अपने सबसे निचले स्तर पर पहुंचा दिया। मांग में कमी और मंदी की आशंकाओं के बीच कच्चे तेल और औद्योगिक जिंसों पर लगातार दबाव आ सकता है। इसलिए, जिंस बाजारों में अस्थिरता इक्विटी बाजारों की तुलना में अधिक हो सकती है।

आप भारत में पूर्ण सेवा देने वाली बड़ी ब्रोकरेज फर्मों में से एक हैं, जिसके पास करीब एक लाख करोड़ रुपये की प्रबंधनाधीन परिसंपत्तियां हैं। एक ब्रोकरेज के रूप में आप और उद्योग कारोबार की मात्रा में अचानक आई गिरावट और ट्रेडरों और निवेशकों की घटती दिलचस्पी से कैसे निपट रहे हैं?

ब्रोकरेज कारोबार हमेशा ही उतारचढ़ाव भरा रहा है और इसलिए नीचे की ओर जाने वाले चक्रों के लिए हम सांगठनिक रूप से तैयार रहते हैं। लागत को बहेतर करके और आय के वैकल्पिक तरीके खोजकर हम हमेशा मंदी का प्रबंधन करते हैं। इसका मतलब कि उद्योग की सभी कंपनियों के ब्रोकरेज राजस्व पर असर पड़ेगा। जियोजित पिछले कुछ समय से वितरण कारोबार को बढ़ा रही है जो ब्रोकरेज आय के विपरीत अपेक्षाकृत कम प्रभावित है। हम पहलेकी तरह खुदरा संपत्ति कारोबार बढ़ाने पर फोकस करते रहेंगे।

प्राथमिक बाजार में आपको कब तक सुधार आता दिख रहा है?

यदि सेकंडरी बाजार सुस्त है तो इसका तत्काल असर प्राथमिक बाजार में दिखाई देगा जो कि अभी दिख भी रहा है। हालांकि, प्राथमिक बाजार के सर्द हो जाने पर उद्योग पर इसका असर ज्यादा होता है। उद्योग को निवेश के लिए पूंजी की निरंतर आवश्यकता होती है और अगर वह धार सूख जाती है तो कमजोर निवेश के कारण औद्योगिक विकास भी सुस्त हो जाएगा। प्राथमिक निर्गमों में उछाल का अगला चक्र अमेरिकी व्यापार नीतियों में स्थिरता के बाद आएगा। तब तक उद्योग को पूंजी जुटाने के लिए निजी इक्विटी का रास्ता देखना होगा।

क्या भारतीय कंपनी जगत टैरिफ युद्ध के लिए तैयार है?

पिछले तीन-चार वर्षों में जुटाई गई जोरदार पूंजी के कारण भारतीय कंपनियों पर टैरिफ का प्रभाव सीमित रहने की उम्मीद है, जिन्होंने अल्पावधि से मध्यम अवधि के पूंजीगत व्यय का ध्यान रखा है। निजी कंपनी क्षेत्र की बैलेंस शीट भी काफी अच्छी है, जिससे इक्विटी वित्त की तत्काल जरूरत सीमित हो गई है।

पहली बार बाजार में उतरने वाले निवेशकों को शेयरों का पोर्टफोलियो बनाने के लिए अभी क्या करना चाहिए?

नए निवेशकों को अपनी जोखिम उठाने की क्षमता का विश्लेषण करने और अपने प्रोफाइल के लिए सही निवेश साधन चुनने के लिए खुद को तैयार करना होगा। बाजार की मौजूदा स्थितियां एसआईपी और संचय रणनीतियों के जरिए दीर्घकालिक धन सृजन के लिए अनुकूल प्रवेश का अवसर देती हैं। शेयरों की कीमतें तेजी से आकर्षक होती जा रही हैं जो निवेश का आकर्षक मौका हैं। एक विवेकपूर्ण नजरिया यह होगा कि घरेलू स्तर पर केंद्रित सेक्टरों जैसे उपभोग (एफएमसीजी और टिकाऊ उपभोक्ता वस्तुएं), बुनियादी ढांचा, सीमेंट, दूरसंचार और वित्तीय सेवाओं में निवेश शुरू किया जाए, विशेष रूप से क्षेत्र की अग्रणी लार्जकैप कंपनियों को लक्षित करके। म्युचुअल फंडों की योजनाएं सभी सेक्टरों में उचित विविधीकरण और संतुलित आवंटन का पर्याप्त मौका मुहैया करा रही हैं। चूंकि भारत की वैश्विक व्यापार पर निर्भरता अपेक्षाकृत कम है और उसके क्षेत्रीय आपूर्ति श्रृंखला बदलाव का संभावित लाभार्थी होने के कारण नए इक्विटी निवेशक तुरंत एसआईपी शुरू कर सकते हैं।

निवेशकों की आदर्श परिसंपत्ति आवंटन रणनीति क्या होनी चाहिए?

एक विविध बहु-परिसंपत्ति आवंटन रणनीति (ऋण योजनाओं, सोने जैसी सुरक्षित परिसंपत्तियों और घरेलू रक्षात्मक शेयरों में उचित निवेश के साथ) जोखिम प्रबंधन और संभावित लाभ पाने के लिए एक समझदारी भरे आवंटन का नजरिया प्रदान करती है। यानी खुदरा निवेशकों के लिए सबसे अच्छी निवेश रणनीति व्यवस्थित निवेश योजना (एसआईपी) है।

मार्च 2025 की तिमाही में कंपनियों के आय सीजन से आपकी क्या उम्मीदें हैं?

दिसंबर-जनवरी से सरकारी खर्च में उछाल मजबूत, हाई प्रीक्वेंसी इंडिकेटरों और तीसरी तिमाही के नतीजों के दौरान कंपनियों के प्रबंधन की उत्साहजनक टिप्पणियों के कारण बाजार कंपनियों की आय को लेकर आशावादी रहा है। चौथी तिमाही का प्रदर्शन तीसरी तिमाही से बेहतर रहने का अनुमान है। हालांकि, वित्त वर्ष 24 की चौथी तिमाही के उच्च आधार के कारण सालाना आधार पर प्रगति धीमी रहने की संभावना है। अभी हम वित्त वर्ष 26 में भारत के लिए 12 से 14 फीसदी की आय वृद्धि के अनुमान पर कायम हैं।

क्या कमोडिटी बाजारों ने उच्च टैरिफ को समाहित किया है?

कमजोर वैश्विक बढ़त परिदृश्य और मंदी के जोखिमों के कारण कीमती धातुओं जैसी कमोडिटीज को लाभ होने की संभावना है। हालांकि कच्चे तेल पर सीधे टैरिफ नहीं लगाया गया लेकिन धीमी वैश्विक वृद्धि के कारण मांग में कमी की चिंताओं ने कीमतों को 2021 के बाद से अपने सबसे निचले स्तर पर पहुंचा दिया। मांग में कमी और मंदी की आशंकाओं के बीच कच्चे तेल और औद्योगिक जिंसों पर लगातार दबाव आ सकता है। इसलिए, जिंस बाजारों में अस्थिरता इक्विटी बाजारों की तुलना में अधिक हो सकती है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button