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आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर क्या नीतीश कुमार डरे?

पटना। इस साल बिहार में होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए चुनावी बिसात बिछ चुकी है। सत्तारूढ़ गठबंधन को एक बार फिर अपने किए गए के कामों पर ही ज्यादा भरोसा है। लालू यादव के राज को जिस तरह जंगल राज का नाम दिया गया है उसे निशाने पर रखकर पिछले कई चुनाव एनडीए जीत चुका है। एक बार फिर उसी को भुनाने की तैयारी है। अब देखना है कि ये कहां तक सही साबित होती है। पीएम नरेंद्र मोदी ने इसी हफ्ते भागलपुर में एक सभा में राष्ट्रीय जनता दल के सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के शासनकाल को ‘जंगल राज’ बताते हुए हमला किया था। नीतीश कुमार तो हर मंच पर जंगल राज को याद कराते रहते हैं। पीएम मोदी के साथ सभा में उपस्थित नीतीश कुमार ने कहा था कि मुझे उम्मीद है कि आपको याद होगा कि जब हम बिहार 2005 में सत्ता में आए थे, तब क्या स्थिति थी। सूर्यास्त के बाद कोई भी घर से बाहर नहीं निकलता था। जाहिर है कि एनडीए एक बार फिर जंगल राज को फिर से मुद्दा बनाकर जनता के डर को भुनाना चाहती है लेकिन क्या 20 साल बाद भी आम लोग लालू के कार्यकाल की गलतियों को आधार बनाकर वोटिंग करेंगे?
क्या एनडीए सरकार के पास अपनी उपलब्धियां कम हैं जो उसे एक बार फिर नकारात्मक कैंपेन जो 20 साल पहले की बात है उस पर भरोसा करना पड़ रहा है? आखिर 20 सालों से प्रदेश के सीएम नीतीश कुमार सत्ता में हैं। क्या इतना समय जनता के बीच बताने के लिए काफी नहीं होता है? फिर अब तो बीजेपी भी साथ में हैं। केंद्र सरकार के साथ मिलकर बिहार में डबल इंजन की सरकार चल रही है। राज्य सरकार में दो-डिप्टी सीएम बीजेपी के ही हैं, फिर आखिरकार लालू राज का नाम क्यों लिया जा रहा है? आखिर बीजेपी ने ये देख लिया है कि अब नेगेटिव कैंपेन का असर जनता पर नहीं हो रहा है।
दिल्ली विधानसभा का चुनाव जीतने के पीछे सबसे बड़ा कारण यही रहा है। बीजेपी ने दिल्ली विधानसभा चुनाव प्रचार में ध्रुवीकरण की राजनीति के बजाय एक सूत्रीय विकास की बातें की थी, जिसका असर हुआ और लोगों ने बीजेपी को आम आदमी पार्टी के मुकाबले तरजीह दी और बीजेपी को जीत हासिल हुई। ऐसा भी नहीं है कि नीतीश के नाम उपलब्थियां नहीं हैं। नीतीश सरकार के नेतृत्व में कानून व्यवस्था आज भी पहले की तुलना में बेहतर है। यही कारण है कि कभी बिहार से बड़े डॉक्टर्स ने पलायन कर दिया था। आज मेदान्ता और पारस जैसे बड़े हॉस्पिटल ग्रुप बिहार पहुंच रहे हैं। बिहार में विदेशी सैलानियों की बढ़ती संख्या बताती है कि बिहार में कानून व्यवस्था में सुधार हुआ है। 2023 की तुलना में 2024 में करीब 2 लाख विदेशी पर्यटक बिहार पहुंचे। बिहार में विदेश निवेश में भी लगातार बढ रहा है। पावर सप्लाई भी पिछले कुछ सालों में बहुत बेहतर हुई है।
सात महीनों के अंतराल में आए दो केंद्रीय बजटों में बिहार के लिए बुनियादी ढांचे में निवेश की झड़ी लगा दी है, जिसमें राजमार्ग, हवाई अड्डे, बाढ़ नियंत्रण और पर्यटन विकास जैसी योजनाएं शामिल हैं। हालांकि विपक्ष बार-बार नीतीश सरकार पर विशेष राज्य की मांग पूरी न करा पाने के लिए दबाव डालता रहता है।

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